Shivani Shakya   (shivani's_dairy)
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A Student
Joined 6 April 2020


A Student
Joined 6 April 2020
15 OCT 2024 AT 21:45

मंजिल जो न मिली .. तो क्या होगा ??
सफ़र में बेसहारा न रहेंगे...
इक रोज़ ग़र हार मिल जाए..तो क्या होगा??
महफ़िलों में नाम हमारे रहेंगे....
और जो चल सकें आप तो चलें अंत तक....
कहीं न कहीं तो हम किनारे पर मिलेंगे ।

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15 OCT 2024 AT 21:39

जो मिल जाए सरलता से,वो चाह थोड़ी सस्ती होगी
अंत तक लडूंगी मैं मेरे बेशकीमती शख्श के लिए।

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10 JUN 2024 AT 15:55

एहसान सा उतारती मैं ज़िंदगी को जी रही
वक्त की उस पोटली को ढूंढती मैं जा रही
हाथ में कुछ पल भी हैं संभालती भी जा रही
जो जीना इसे कहते है तो, हां जीती मैं जा रही
हर घड़ी जो बढ़ रहीं, सुइयों को घुमा रही,
रोके से भी न रुकें बस घूमती ही जा रहीं
ख़ैर वक्त हैं इस वक्त का जाएगा ही जाएगा
जाते जाते नाम कुछ ,यादों को दे जाएगा
ज़िंदगी के लम्हों में तुझे याद मैं करती रही
इंतजार से इंतहा कर दी सब्र मैं करती रही
ज़िंदगी की श्वास हर एक नाम तेरे लिख के दी
श्वास क्या चीज़ है, जा धड़कन-ए-राजगद्दी दी
जो लग सके भगवन मेरे,वक्त की नुमाइशें यूं लगवाइएगा,
हिस्से मेरे ज्यादा से ज्यादा वक्त उसका दिलवाइएगा
जो स्थिति है आज, कल वो परिस्थिति भी न रहे
दृग मेरे प्रियतम प्रतीक्षा सांझ तक बस ही रहे
कल्पनाओं को टटोलती मैं स्वप्न में ही जी रही
वास्तविकता न सही घूंट उम्मीद का मैं पी रही
एक स्थान है तू जहां सम्राट मेरा बन गया
हृदय मेरा हृदय ही था,अब साम्राज्य तेरा हो गया
निहारती आईने में ख़ुद को , ख़ुद ही ख़ुद में खो गई
संवारती केशों को अपने मैं उलझती रह गई
जादू किया क्या राम जाने सुध ही अपनी खो गई
है भाग्य क्या दुर्भाग्य क्या न जानूं कि किस्मत है क्या
अगर प्रेम तेरे ही रंगू फिर मुझसे खुशकिस्मत है क्या
शेष कुछ बचा नहीं मैं तो तुझमें गुम गई
तू पास हो या न रहे छवि मुझमें तेरी रम गई

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10 JUN 2024 AT 15:50

एहसान सा उतारती मैं ज़िंदगी को जी रही
वक्त की उस पोटली को ढूंढती मैं जा रही
हाथ में कुछ पल भी हैं संभालती भी जा रही
जो जीना इसे कहते है तो, हां जीती मैं जा रही
हर घड़ी जो बढ़ रहीं, सुइयों को घुमा रही,
रोके से भी न रुकें बस घूमती ही जा रहीं
ख़ैर वक्त हैं इस वक्त का जाएगा ही जाएगा
जाते जाते नाम कुछ ,यादों को दे जाएगा
ज़िंदगी के लम्हों में तुझे याद मैं करती रही
इंतजार से इंतहा कर दी सब्र मैं करती रही
ज़िंदगी की श्वास हर एक नाम तेरे लिख के दी
श्वास क्या चीज़ है, जा धड़कन-ए-राजगद्दी दी
जो लग सके भगवन मेरे,वक्त की नुमाइशें यूं लगवाइएगा,
हिस्से मेरे ज्यादा से ज्यादा वक्त उसका दिलवाइएगा
जो स्थिति है आज, कल वो परिस्थिति भी न रहे
दृग मेरे प्रियतम प्रतीक्षा सांझ तक बस ही रहे
कल्पनाओं को टटोलती मैं स्वप्न में ही जी रही
वास्तविकता न सही घूंट उम्मीद का मैं पी रही
एक स्थान है तू जहां सम्राट मेरा बन गया
हृदय मेरा हृदय ही था,अब साम्राज्य तेरा हो गया
निहारती आईने में ख़ुद को , ख़ुद ही ख़ुद में खो गई
संवारती केशों को अपने मैं उलझती रह गई
जादू किया क्या राम जाने सुध ही अपनी खो गई
है भाग्य क्या दुर्भाग्य क्या न जानूं कि किस्मत है क्या
अगर प्रेम तेरे ही रंगू फिर मुझसे खुशकिस्मत है क्या
शेष कुछ बचा नहीं मैं तो तुझमें गुम गई
तू पास हो या न रहे छवि मुझमें तेरी रम गई

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6 JUN 2024 AT 18:22

दिल के मकां में जब से उनका आना हुआ
जो हुआ सो हुआ क्या खूब हुआ
और कुछ यूं हमारा जीना आसान हुआ

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6 JUN 2024 AT 9:18

न कर मजबूर कि जंग ए मोहब्बत में बागी न हो जाऊं
जो चल सके तो चल मंज़िल तक
या लौट जा वापस कहीं मैं तेरी आदि न हो जाऊं

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5 JUN 2024 AT 9:48

हैं कश्मकश में क्यों खड़ा क्यों मन में ये हताशा हैं??
हाथ थामे रख भरोसे का तू शक्श बे-तहाशा हैं ।


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4 JUN 2024 AT 22:09

थाम कर रख मुस्कान यूं वक्त के साथ
कहीं छूट न जाए हाथों से रेत सी ये रात
की रह सचेत माहौल फिसल सकता है
मौसम कोई भी हो हर मौसम बदल सकता है

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4 JUN 2024 AT 20:13

कल रह न सकूं इन गलियों में,
समेट गालियां चल दूंगी....
घर महलों में ही न सही,
शमशान घाट मैं रह लूंगी....
माना एक मजबूर हूं मैं,
मजदूर नहीं
अब थक कर के मैं चूर हुई
मजबूत हूं मैं,अटूट भी मैं,
कसूर नहीं,
बस इल्जामों में मशहूर हुई,
कई फर्क नज़रिए महसूस किए
चल पड़ी सोच महफूज़ लिए
जो जग अनुकूल गई कोहिनूर हुई
अरु ज्यों प्रतिकूल गई, बेशऊर हुई,
         

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4 JUN 2024 AT 19:59

दिल टूटता हैं दिल दुखता हैं
बेवजह नहीं अपनों के द्वारा झुकता है
जब इंगित करे समाज तुम्हें
कांटा सा हर कोई चुभता है।

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