पता है कन्हैया ये मन इतना आनंदित क्यों है
क्योंकि इस मन में तुम्हारी याद जो रहती है...❤️-
निगाहों में तुम्हारी जो देखा कन्हैया,
अब यहीं है ठहरना अब यहीं है ठिकाना
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जगत का हर रंग है फीका
जगत का हर रंग है अधूरा
जगत का हर रंग है झूठा
बस एक मेरे राधेश्याम का हर रंग है अनूठा ❤️-
कभी याद आते हो,कभी ख्वाब में आते हो,
कभी हँसाते हो, कभी रूलाते हो,
मुझे सताने के सलीके तो कन्हैया तुम्हें बेहिसाब
आते हैं।-
श्री राधे हर सांस मधुरं है,
जब से श्री मधुराधिपति इस हृदय में है....❤️-
जहाँ सम्बंध "प्रेम" "अपनत्व"
से जुड़ा होता है।
वहाँ "दिल" "दिमाक" "धड़कन" "मन"
सब कुछ होंता है।
"प्रेम" "अपनत्व" ही
सब का सार है
"प्रेम" "अपनत्व" से ही "रिश्तों" में
"बसंत बहार" है।-
"मन" से तो परिवर्तन होते है।
"मन" आज है कल नही,
रिश्ते तो सिर्फ और सिर्फ
"प्रेम" "अपनत्व" के "एहसास"
से बंधे होते है।
रिश्ते तो केवल "दिल"
से निभाये जाते है।-
"प्रेम" "अपनत्व" से बंधे रिश्ते
अंतर्मन के भाव है।
"प्रेम" में ना कोई निश्चित उम्र
ना कोई बोझ है।
"प्रेम" अपनी ही धुन में
बेखबर,मस्त सवार है।
"प्रेम" "अपनत्व" के एहसास
से ही रिश्तों का अस्तित्व है।-