हाँ वही सफर जिसकी उम्मीद खो चुके थे हम।वो उस रात खाली सड़क पर हम दोनों का हाथ पकड़ कर चलना और तुम्हारा यह यकीन ना कर पाना की हम साथ है।ऐसा लग रहा था मानो वो दुनिया ही कुछ और हैं।उस शहर से अनजान हम दोनों बेख़ौफ़ जैसे अपनी ही परिकथाओं में थे।वो अनजान रास्ते कितने अपने से लग रहे थे वहाँ हर एक पल कितना खुशनुमा सा था।वह खाली सड़के ,वो शांत सा वातावरण ,मंदिर की घंटियों की आवाज़ें हवाओ में घुल रही थी ।ठीक वैसे ही जैसे हम एक दूसरे में।
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