shivani chauhan   (Shavy)
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Joined 19 May 2020


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Joined 19 May 2020
29 APR 2024 AT 18:40

चुप हूँ, हँसता हूँ, खिलखिलता हूं इन बारिशों के मौसमों में
दिल इतना दुखा होगा कि आंसू का कतरा भी नहीं निकलता

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15 JAN 2024 AT 18:40



ये हिचकिचाहट, ये बेचैनियाँ
ये उहा पोह, ये जद्दोजहद
ज़र्द ख़ामोशी से भरी
खाली चौक पर खड़ी ये गाड़ियाँ
दूर की यात्रा कराती,
कोहरे की चादरों में सुलाती
आगोशी इनका कफन हो जाती
मिट कर भी झटपटाती ये बेचैनियाँ



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13 JAN 2024 AT 19:45

शाखाओं पर पत्तियों सा उग मैं अब वापस लौटूंगा
प्रश्न ये,
थका हरा, बेचैन होकर? या सरहदों के फ़ैसले कर?
रातों रात ये फ़ैसले नहीं होंगे, सोचने के लिए दिन नहीं होंगे
पर मैं वापस जरूर लौटूंगा

प्रश्न ये, कैसा होकर?
अंक से शून्य, शून्य से अंक हो, विस्तृत जड़ों में विलीन होकर
जुगनू की महीन ओढ़नी हो, पथिक जो पथभाषित होकर
रेशों सा उधड़ अब मैं लौटूंगा

प्रश्न ये, कहां मिलूंगा?
कभी रेशों सा पृथक कुछ खोजोगे, संशेत्र कांच का वो लेते आना,
वजह इसकी स्वयं तुम जान लेना
जैसे शुभ्र में अवशोषित सब, रिक्त सा मैं मिल जाऊ तब

प्रश्न ये, कैसे?
ये अब मुझे पता नहीं, या यूं कहो, मैंने कभी सोचा नहीं
क्यूँ नहीं सोचा, ये भी मैंने सोचा नहीं
फिर भी,
यहाँ वक़्त को मोहरा बना दिया
और
समस्त लोक में विचरण कर लौट आती है काविताएं जैसे,
वैसे रंगबिरंगी छाप होकर उनकी लौटूंगा










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10 JAN 2024 AT 20:05

जितना मुश्किल हैं समझा पाना
उतना मुश्किल हैं समझ पाना
रिश्तों में उलझ रिश्तों से निकल जाना
कितना मुश्किल हैं ये भी कह पाना

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5 JAN 2024 AT 19:31

भीड़ में होकर भी उसमें शामिल नहीं हो पाती
ना जाने क्या हुआ कि ख़ुद में ही घुल नहीं पाती
लोगों के लिए हो सकती ये आभासिक मनोदृष्टियां
जो बीत रही वही जिंदगी का किस्सा नहीं हो पाती

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4 JAN 2024 AT 20:58

गर करें कोई नफरत, नाराज़गी उसका माकुल जवाब हैं
पर करें क्या वो पथिक, जब प्रेम में लिपटे वो जनाब हैं

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3 JAN 2024 AT 18:33

ख़ामोशी में जो ख़ामोशी तुम ढूंढ रहे
शून्य लिप्त आख़रों में वो कही खो गए
गहराइयाँ क्या मापेंगी जो बीत गयी
उसको उसी विलयन में क्यूँ तुम खोज रहें

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24 NOV 2023 AT 21:15

शाखाओं पर पत्तियों सा उग
मैं अब वापस लौटूंगा
प्रश्न ये,
थका हारा, बैचेन हो कर ?
या सरहदों के फासले कर ?
रातों रात ये फैसले नहीं होंगे
सोचने के लिए दिन नही होंगे
पर मैं वापस जरूर लौटूंगा

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3 MAR 2022 AT 22:16

मेरी ideal और non ideal प्रिय,
मैं reversible सा तुम्हारा आशिक़ प्रिय।
Cyclic इश्क़ की चक्की में बैठे,
बना दिया PMM का भार इसे प्रिय।।

Properties छीतर बितर सी हमारी,
तुम intensive, मैं extensive प्रिय।।
Irreversibility की चाहत में,
Entropy को जन्म दे बैठे हम प्रिय।।

तापमान zeroth सा चलता रहा,
और हम absolute से होते प्रिय।
Macroscopic जज़्बातों को,
Microscopic से तौलते प्रिय।।

विध्वंश विभाजन का दंश झेला,
System की boundary बन बैठे प्रिय।

Pressure तुम बनाती गई,
Volume की तरह मैं बढ़ता गया प्रिय।
Molecular weight के चक्कर में,
जज़्बातों का concentration बढ़ता प्रिय।।


Evolution तुम्हारा temperature scale सा,
और मैं थर्मल reservoir सा रहा प्रिय।
Heat engine सी गाड़ी फिर भी चलती रही
Carnot सी चाहत प्रबल होती ही रही प्रिय।।

कभी Gibbs कभी helmholtz बनते गए
Maxwell equations से हम प्रिय सजते गए।

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31 JAN 2022 AT 18:25

शून्य है साहिल, बीच समंदर है बस्ती
लहरों के आखेटों में,दरिया हो गई कश्ती

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