Shivani   (Shivani)
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Joined 23 March 2020


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5 HOURS AGO

प्यार तो देखा है
पर सच्चा नहीं झूठा देखा है
जब बात आती है किस्मत की
तो हर बार उसको रूठा देखा है

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6 HOURS AGO

वो बेवजह रूठते रहें
हम हर बार मनाते रहें

हम पास से दूर
और दूर जाते रहे

क़रीब कभी हो न सकें
नज़दीक कभी आ न सकें

क़रीब और नजदीक का अंतर
समझ कर भी कभी समझ न सकें

जो न सोचा था कभी
उन हालातों से गुजरते रहे

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7 HOURS AGO

बहुत हो गई लड़ाई अब कुछ देर बाहों में रह लेने दें
जो बात जुबां कह न सकीं धड़कनों को कह लेने दें

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15 HOURS AGO

इम्तिहानों का दौर फिर आने लगा है
वो और वक्त आज़माने लगा है

नहीं भरता मन दिन के उजाले में
रात ख़्वाबों में आकर भी सताने लगा है

क्या कहूं मैं इनकी मोहब्बत
आहिस्ता-आहिस्ता नींदे उड़ानें लगा है

जितना सुलझाती हूं सब कुछ
वो बार-बार लौट फिर उलझाने लगा है

इक पल को गलतफहमी पाल लेती हूं फिर से
कि क्या कहीं वो मुझे शिद्दत से चाहने लगा है

दूसरे ही पल हर ज़ख्म एहसास दिला देते हैं
क्यों तू अपने पागल दिल को और पागल बनाने में लगा है

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YESTERDAY AT 22:49

वो देख मुझे
मुझे और मेरी कहानी समझने आएं थे
पर साथ वो सिर्फ़ दिमाग लेकर आएं थे

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YESTERDAY AT 12:16

क्यों ख़्वाबों को ख़्वाबों की तरह सजाना है
खुद को खुद ही सब जान कर भी गर्त में गिराना है

हर बार वफ़ा निभा कर भी धोखा ही जब पाना है
तो क्यों फिर से बार-बार किस्मत को आजमाना है

अब न किसी का साथ पाना है न ही उम्मीदें लगाना है
हमें तो बस खुद के साथ ही जिंदगी को अपनाना है

यही जिंदगी का फ़लसफ़ा और फ़साना है
अकेले हैं आएं अकेले ही चले जाना है

तो क्यों उम्र भर इश्क़ की चाह रख
अपने हिस्से दर्द और आंसूओं को लाना है

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YESTERDAY AT 10:24

बहुत मुश्किल से अकेलापन ख़रीदा है
यूं ही थोड़े ना ये बाजारों में मिलता है

बेहिसाब प्यार और परवाह बांटना पड़ता है
तब जाकर अकेलेपन का तोहफ़ा मिलता है

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YESTERDAY AT 7:35

मैं और तुम से हम
हम से हमसफ़र हुएं

हम की ताक़त से
एहसासों में दम हुएं

आहिस्ता-आहिस्ता
बातें और जज़्बात कम हुएं

दिल में दर्द और
आंखें नम हुएं

चुलबुले थे जो कभी
वो अब क्षम हुएं

तभी तो खुशियों की जगह
दर्द और आंसू सम हुएं

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30 APR AT 23:26

बड़ी मुश्किल से मिला था वो
जो समझने लगा था मुझे

कमबख़्त वक्त ऐसा आया
कि वो भी समझदार हो गया

फिर क्या होना था
मानों अतीत का पन्ना
फिर पलट गया

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30 APR AT 21:26

अतीत की चादर में
कुछ इस तरह लिपटी हुई हूं
कि जी तो आज में रहीं हूं
पर हर बात, एहसास और याद
में ही घिरी हुई हूं

सांसें तो चल रही हैं पर
जी कर भी कहां जी रहीं हूं
है अंदर तो बहुत शोर
पर लब सी रही हूं

बेवफाओं की बस्ती में
शिद्दत ए मोहब्बत की
चाह में फिर रहीं हूं
हूं इतनी नादान
कि ज़हर की शीशी में दवा ढूंढ रहीं हूं

तभी तो हर पल
जिंदगी में ज़हर पी रहीं हूं
Shivani

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