अल्फ़ाज़ वही थे,
मायने बदलते रहे।-
यह मेरे-तुम्हारे बीच, जब हो अनबन जाती है,
उल्फ़त की मौन कोशिशें, अना पर ठन जाती हैं।
सिलसिला फिर लम्बा एक इंतज़ार का चलता है,
वक़्त बीतता रहता है, और गिरहें बन जाती हैं।-
छुट्टी 'में' घर से जाने,
और छुट्टी 'लेकर' घर को जाने के बीच के फ़र्क को
ज़िम्मेदारी कहते हैं।-
ज़िम्मेदारियों के बोझ से,
मरता रहे भले तिल-तिल।
एक उम्रदराज़ जो ठहरा,
सो बात नहीं मानेगा दिल।-
बड़ी फुरसत थी उन्हें,
जब तक हमें रिझाना था,
मियाँ आजकल बड़े मसरूफ़ रहते हैं।
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Dear 'unrealistic goals',
Since real people are rare now, you may hereby go to hell.
With lots of sympathy,
Me.-
People urging you to voice your feelings,
are often the same who label them as 'excuses' and 'escapes'.-
जो अंतर्मन की बुराई से हारे जा रहे हैं,
सुना है, धूमधाम से दशहरा मना रहे हैं।-
जिनके कारण नींदों से जग जाया करते हैं हम,
वो अक्सर सुकून की नींद सोते हैं।-