ये दिन भी गुजर जाता है
शाम भी ढल जाती है
मगर...
कमबख्त ये रात नही छंटती ।-
You tube - Shivangi's poetry t... read more
ना लिखने को अल्फाज़ है
ना ही गाने को कोई साज़
ना संग में कोई राज़ है
ना ही खामोशी का कोई अंदाज ।-
प्यार लिखूं पर दर्द भी तो है
दर्द लिखूं तो सुकून भी तो है
सुकून लिखूं तो बेचैनियां भी तो है
हर एक चीज के उलट
एक कहीं निशानियां भी तो है
और ये सब कुछ है जिसमे
वो और कुछ नही एक जिंदगी ही तो है।
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काफ़ी कुछ सुनाना है
छुपी हुई बातों का राग गुनगुनाना है
कोई हो पास ये महज एक बहाना है
असल में मुझको कुछ भी नही फरमाना है।-
कुछ बातें दर्ज होना चाहती है कहीं पन्नो में
मगर उस किताब के शहर में कोई राह ही नही ।-
विचारों में कुछ लिखने की तलब
मगर महज दो चार अल्फाज़ों से ही घिरे लब
अब आगे की कहानी को पूरा करेगा कौन?
फिलहाल तब तक वाजिब है ये ठहरा मौन।
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बादल कुछ इस कदर छाए है
की साथ निभाने को ये चांद भी नही
बस खुद से ही बातें और मुलाकाते है
कुछ इस तरह अभी समां बांध रखा है यहीं-
चांद की कमी है
जमी पे बसी कुछ नमी है
खामोशी की रवाएँ है संग
आज रात महफिल कुछ इस कदर जमी है।-
रातों को ना जाने एक जख्म चाहिए
बिन आह के अंधेरे में चार चांद नही लगते।-