shivangi pradhan  
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Joined 29 March 2019


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Joined 29 March 2019
25 AUG 2022 AT 23:03

ये दिन भी गुजर जाता है
शाम भी ढल जाती है
मगर...
कमबख्त ये रात नही छंटती ।

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19 JAN 2022 AT 21:52

ना लिखने को अल्फाज़ है
ना ही गाने को कोई साज़
ना संग में कोई राज़ है
ना ही खामोशी का कोई अंदाज ।

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1 DEC 2021 AT 21:36

प्यार लिखूं पर दर्द भी तो है
दर्द लिखूं तो सुकून भी तो है
सुकून लिखूं तो बेचैनियां भी तो है
हर एक चीज के उलट
एक कहीं निशानियां भी तो है
और ये सब कुछ है जिसमे
वो और कुछ नही एक जिंदगी ही तो है।

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9 NOV 2021 AT 18:38

काफ़ी कुछ सुनाना है
छुपी हुई बातों का राग गुनगुनाना है
कोई हो पास ये महज एक बहाना है
असल में मुझको कुछ भी नही फरमाना है।

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21 OCT 2021 AT 21:40

कुछ बातें दर्ज होना चाहती है कहीं पन्नो में
मगर उस किताब के शहर में कोई राह ही नही ।

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12 OCT 2021 AT 20:10

विचारों में कुछ लिखने की तलब
मगर महज दो चार अल्फाज़ों से ही घिरे लब
अब आगे की कहानी को पूरा करेगा कौन?
फिलहाल तब तक वाजिब है ये ठहरा मौन।

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28 AUG 2021 AT 21:51


तलाश में हूं उन शब्दों की
जो मेरे वर्तमान को मौन से जगा सके

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23 AUG 2021 AT 21:24

बादल कुछ इस कदर छाए है
की साथ निभाने को ये चांद भी नही
बस खुद से ही बातें और मुलाकाते है
कुछ इस तरह अभी समां बांध रखा है यहीं

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20 AUG 2021 AT 21:28

चांद की कमी है
जमी पे बसी कुछ नमी है
खामोशी की रवाएँ है संग
आज रात महफिल कुछ इस कदर जमी है।

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4 AUG 2021 AT 23:20

रातों को ना जाने एक जख्म चाहिए
बिन आह के अंधेरे में चार चांद नही लगते।

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