Shivangi Pandey   (Shiv)
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विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्
Dum Spiro Spero🦋🍂🍁
Joined 26 September 2018


विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम्
Dum Spiro Spero🦋🍂🍁
Joined 26 September 2018
3 JUL 2020 AT 18:30

Home is not where you lived for years, home is from where you never wanna leave...

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24 JUN 2020 AT 3:37

नसीब मेरा तू बिगड़ने भी नहीं देता,
सीधे रास्ते मुझे चलने भी नहीं देता।
गिरा देता है यूं तो हर बार मुझे,
और एक ख़रोंच भी लगने नहीं देता।
ऐब बेहिसाब दे दिए हैं मुझको,
पर फ़रेब मुझे करने नहीं देता।
मेरी सुबह को रोशनी कम दी है पर,
मेरी रातों को तारे कभी कम नहीं देता।
तू मेरी किस तरह निगेहबानी करता है
ऐ मालिक,
तूफ़ान में कश्ती छोड़ देता है मेरी
पर मेरी कश्ती डुबने नहीं देता।

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28 MAR 2020 AT 0:16

ये जो दिल के नख़रे हैं जनाब समझ में नहीं आते,
जब उदास थे तो खुश होना चाहते थे, अब खुश हैं तो ग़म याद आते हैं।
वो कल जब ज़ख्म ताज़े थे तो दवा धुंधते फिरते थे,
और जो आज भर गए हैं तो उनके दाग धुंधते फिरते हैं।
यूं तब रो लेते थे तो दिल कुछ हल्का हो जाया करता था,
और अब हंस लेते हैं तो डर से जाते हैं।
डोर कमज़ोर है या हम से ही मनमानी हो जाया करती है,
कि रिश्ते बिखरते हैं तो बिखरते चले जाते हैं।
बस मसला-ऐ-ज़िंदगी है सो हंस भी लेते हैं रो भी लेते हैं,
बाकी मौत है आते आते आएगी, जान है जाते जाते जाएगी।

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8 OCT 2019 AT 1:42

रहने दो यूं ही क़ायम प्यार की पाकीज़गी को ज़हन में सबके ,
गर झूठ हो बुनियाद किसी कि तो फ़रेब का नाम दिया करना।

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28 SEP 2019 AT 2:35

आंखों के सामने से गुज़रती ये जिंदगी
कुछ जानी पहचानी सी लगती तो है,
हां,ख़्वाब में देखी थी शायद कभी
बला की खुबसूरत दिखती थी।

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15 JUL 2019 AT 23:06

रास्ते पर कि वो अब तक की सबसे अच्छी एक कुल्हड़ वाली चाय,
रेडियो पर यूं सुनते-सुनते आया एक भुला बिसरा गाना,
भीड़ में अनजानों की किसी एक पहचाने चेहरे का मिल जाना,
तपती गर्मी में कहीं से अचानक आया हुआ एक हवा का झोंका,
छत पर पुराने किसी दोस्त के साथ सालों बाद बिताई गई एक शाम,
स्टेशन पर घंटों से रुकी हुई ट्रेन का आखिरकार चल देना,
पन्ने पलटते हुए किसी पुरानी किताब का फुर्सत में लिखा एक मिसरा मिल जाना,
जाते हुए उठ कर किसी का हाथ पकड़ कर एक बार फिर बैठा लेना,
दूर जाने पर गले लगाकर किसी की आंखों से निकला एक आंसू,
बाहर निकलने से पहले मां का एक बार माथा चूमना,
और बस गमों के सारे पलों पर खुशी के किसी एक लम्हें का यूं भारी पड़ जाना।।।


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22 MAY 2019 AT 22:19

कितनी अजीब बात है,
बड़े-बुजुर्ग बच्चों को सारी सीख देकर
अक्सर खुद ही भूल जाते हैं ।

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8 MAY 2019 AT 4:26

क्या याद है?
कहां गया वो झूला जिसमें आधा बचपन बीता था,
वो कागज़, वो पहली किताब जिसमें लिखना- पढ़ना सीखा था,
वो सारे पैसे जो गांव से लौटते हुए कमाए थे,
और उन्हीं पैसों से जो खिलौने खरीद कर लाए थे।

क्या याद है?
कहां गए वो कपड़े सारे जो प्यारे थे,
त्योहारों में जि़द कर के जो पापा से मंगवाए थे।
वो जगह जहां पर सारे टूटे दांतों को कभी छुपाया था,
या जहां पर गीली मिट्टी से घरौंदा हमने बनाया था।

गुज़र रहा है वक्त छोड़े इन सारे एहसासों को,
घड़े बुझा देते थे जब गर्मी में प्यास को,
अंधेरे में भी जब चीज़ों को ढुंढना आता था,
जब अम्मा का बनाया पंखा ही सारी गर्मी मिटाता था।


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11 APR 2019 AT 2:54

काबिलियत बस इतनी ही है की,
दुसरों की तकलीफ़ समझ आ जाती है।


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31 MAR 2019 AT 1:47

खुशी जो आंसू में झलके,
दर्द भरी मुस्कान भी,
सोता हुआ गुज़रा सवेरा,
जगती गुज़ारी रात भी,
है ज़रा बेढ़ंगा मेरा जहां।

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