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मैं प्राथमिकता हूँ, क्योंकि मैं कोई ठंडी चाय नहीं
जो वक्त पर न मिले तो फेंक दी जाए।
मैं वो पहली बारिश हूँ —
जिसके लिए धरती महीनों तपती है,
और जब वो आती है,
तो हर पेड़, हर पौधा, हर परिंदा नाच उठता है।-
प्यार से ज़्यादा अपनापन मायने रखने लगा।
और अब जब वो नहीं है,
तो लगता है मैं किसी खाली स्टेशन पर बैठी हूँ…
जहाँ ट्रेन आती है, रुकती है,
मगर मेरा डिब्बा कभी नहीं आता।-
मैंने जाना कि जाने देना कोई असफलता नहीं, बल्कि एक बलिदान है; एक उच्चतम प्रेम। पतझड़ की वह पत्तियाँ जो रंगों से भरी थीं, लेकिन फिर भी उड़ने को वो तैयार थीं—उनके जाने में भी सौंदर्य था। उनके मुक्त होने में, पेड़ को फिर खिलने की प्रेरणा मिली, और मिट्टी को अपना पोषण बढ़ाने की शक्ति। उसी तरह, जब मैं उसे रिहा करती हूँ, तो वो केवल उसके लिए नहीं—अपने लिए भी संपूर्णता का द्वार खोलती हूँ।
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तुम्हें देखती हूँ तो लगता है जैसे सूरज की पहली किरण छू रही हो चेहरा —
गर्माहट भी, चमक भी, पर टिकती नहीं।
तुम्हारी बातें जैसे हवा की तरह हैं —
सहलाती ज़रूर हैं, पर पकड़ में नहीं आतीं।
— % &मैं एक शांत झील की तरह हूँ शायद —
जो तुम्हारे पत्थर फेंकते ही हलचल में आ जाती है।
पर जब तुम चले जाते हो,
तो वही झील खुद के अक्स में अकेली डूबती जाती है।
— % &-
प्यार शोर से नहीं,
धैर्य से निभाया जाता है।
न दिखावा, न दावा,
बस हर दिन थोड़ा-थोड़ा
एक-दूजे में समाया जाता है।
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अगर तुम दिल खोल सको,
तो मैं पूरी दुनिया छोड़ सकती हूँ तुम्हारे लिए।
पर अगर तुम्हारा दिल ही मेरे लिए बंद है,
तो मुझे भी अपने दरवाज़े बंद करने पड़ते हैं…
ना चाहते हुए, धीरे-धीरे।-
कभी नहीं चाहा तुझपे हक जताना
क्योंकि जो होते है अपने वो समझ जाते है
हमदम को हाल दिल का नहीं पड़ता है बताना-
मुझे गवारा नहीं तेरा किसी और को यूं चाहना
तुझे पता है मैं उदास हूं
पर अंजान बन जाता है कर के बहाना
कहता है जान लेता है हाल मेरे दिल का बिना मेरे बोले
फिर कैसे दिया किसी और वो जो मेरा था
सच कहूं तो अब मुझे नहीं चाहिए तू
जा खुश रह और हो सके तो अब लौट के मत आना-