...कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें फिर बहस को, इक मोड़ दें जिसमें गलत तुम भी नहीं, जिसमें गलत हम भी नहीं कैसा हो गर इस बहस पर, दुनिया की हम कुछ राय लें गर हार जाऊँ मैं यहां, तो मौन मुझको बना लें, और हार जाओ तुम अगर तो बहस को अब बस करें...
बचपन से ले बुढ़ापे तक, एक वो जो हाथ बटाता है, झगड़ा जिससे हर बात पर, अक्सर यूं ही हो जाता है, तुम दिखो जो सुन्दर, फिर भी वो, तुम्हें बदसूरत बतलाता है, पर एक आंसू जो छलका लो, सारे जग से लड़ जाता है, वो ही तो भाई कहलाता है, बस वो ही भाई कहलाता है...