Shivam Vishwakarma   (एकलव्य विश्वकर्मा)
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Joined 1 October 2017


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19 MAY 2022 AT 2:51

अपनो से थोडा़ दूर
अपने ही हाल पर मजबूर है
याद आती है वो बाते
कुछ अपनो का बात बात पर चिढाना
बहन से हर रोज झगड़ना
माँ के पीछे छिप जाना
कभी उन्हे सताना
कभी रोकर उन्हे ही पिघलाना
पापा का यूँ ही डाँटना
रोने पर गले से लगाना.
कही सब कुछ
मिट सा गया है,
यादो मे उनकी गला
सूख सा गया है,
है तो यहाँ सब मेरे पास
पर परिवार के बिना
ये जीवन मुझसे रूठ सा गया है,

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19 MAY 2022 AT 2:42

सुकून की तलाश में, मैं बोहोत दूर आ गया हू,
सुकून तो मिला नहीं लेकिन खुद को ही भुल आया हु।
कौन साथ रहेगा और कौन नहीं इन बातों में कही उलझ सा गया हु,
ये दुनिया और इसके रंग में अब कही मिल सा गया हु,
सुकून तो मिला नहीं लेकिन खुद को ही भुल आया ।

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18 OCT 2021 AT 23:59

फिर वो इश्क ही क्या जो
इंसान से उसकी जिंदगी ना छीन ले,

फिर वो इश्क ही क्या जो
इंसान से उसकी जिंदगी ना छीन ले,


बहुत कम लम्हें बचे हैं जिंदगी के
ए "दिल" तू अब गिन सके तो गिन ले।।।

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28 SEP 2021 AT 10:23

ख़ुद पर किसी को हँसने
नहीं दिया हमनें
जब पूछा किसी ने सवाल
तब सिगरेट जला ली

सूखे गले से शायरी करना
मुश्किल हैं बहोत
जब आया ये ख़याल तो
तब सिगरेट जला ली

गुस्से को अपने मैं पीता रहा
जब आँखे हुई लाल
तब सिगरेट जला ली

अच्छा नहीं हैं ज़हर का पीना
जब देखा खुद का हाल
तब सिगरेट जला ली

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27 SEP 2021 AT 1:06

लगता है मैं बड़ा हो गया हूं ।
बचपन में मिट्टी से ही खेला करता था, अब उसी मिट्टी से खुद को दूर रखता हूं शायद अब मैं बड़ा हो गया हूं।।
दोस्तो के घर भटकते गुजरता था दिन ।
अब एक तेहखाने से कमरे का राजा बन गया हूं ...
धूप छांव की फिकर ना होती थी जिसे,
अब सुबह शाम घर से निकलने वाला परिंदा हो गया हूं ...
जिस बैट बोल को खेलते गुजरती थी शाम, अब उस बोल से में डरने लगा हूं ...
इतनी जल्दी क्यों बड़ा हो गया मैं,
ये खुद ही अपने आप से कहने लगा हूं...
और अब तो कहानी सी हो गई है जिंदगी अब खुदके किरदार को पहचानने की कोशिश कर रहा हूं ।।

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15 SEP 2020 AT 21:43

मेरे ख्वाब भी मुझे टूट'ते हुए दिखे,
जब ख्वाबो को जिंगदी से रुबरु करवाया हमने!

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20 APR 2020 AT 1:10

ज़रा चैन से सांस लेने दे ए ज़िंदगी,
में आज अपने हालातो से मजबूर हूं,
कोई मजदूर नहीं । ।

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18 APR 2020 AT 23:13

इस सिगरेट के सहारे उसका ख्याल मिटा रहा हूं।
उलझ चुके थे जो धागे।

हर एक जाम के सहारे उन्हें सुलझाने की कोशिशें भी तो तमाम कर रहा हूं,
और उन कोशिशों की आग में
में अपने आप को कुछ यूं जला रहा हूं,
की अब हर धुएं से मिलकर,
में अपने आप को मौत के और करीब ला रहा हूं। ।

इस सिगरेट के सहारे उसका ख्याल मिटा रहा हूं।

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16 APR 2020 AT 9:54

मै अपना घर छोड़ दूर वापस अपने शहर आया हूं,
लेकिन आज भी मेरी नींद आपकी डांट से खुलती है,
मैं जब भी कभी थोड़ी कम सी रौशनी मे बैठता हूँ,
मेरी आंखो के सामने आपकी सूरत दिखती है,
मेरा जिस्म जरूर है यहां,
पर मां मेरी जान आज भी आपकी सांसों में ही बस्ती है।

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12 APR 2020 AT 1:32

Nind nahin aati he ab mujhe,
kyuki har roz khayalo me rehta hu tumhre.....

(Read the caption)

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