कभी अर्श पर कभी फर्श पर
कभी खुद मै तो कभी खुद पर,
यूं फिर रहा हूं ज़मीर पर
नामोनिशान मिटा कर।।
की ऐ - ज़िन्दगी गले लगा ले
कुछ यूं खड़ा हूं उस मोड़ पर,
जहां जिंदगी को ज़िन्दगी से जुदा कर
तुम गई थी मेरा दामन छोड़कर।।
कुछ तो अता फर्मा ए खुदा तू मुझ यतीम पर,
की उसका हो के भी हो जाऊं तू इतना तो मेरा यकीन कर!!- Siddarth
21 JUL 2020 AT 12:52