बुरे नहीं थे हम साहब,
मसला बस इतना था कि,
वो समझ नहीं पाए,
हम साबित ना कर पाए।।-
Kbhi jo charche hue to likhawat mukammal ho jygi
कुछ इश्क़ लिखूं या कुछ लिखूं तेरी नाराज़गी पर,
यूं घुट कर जीना अब गवारा नहीं होता।
मुकम्मल नहीं होनी ये अदावतें अब मूझपर,
इलज़ाम अगर तूने मुझ पर लगाया नहीं होता।।
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क्या ही लिखूं मैं बहन पर ए फ़राज़ ,
मेरे मुकद्दर मैं भगवान ने लिखा है नहीं उसे !-
कभी अर्श पर कभी फर्श पर
कभी खुद मै तो कभी खुद पर,
यूं फिर रहा हूं ज़मीर पर
नामोनिशान मिटा कर।।
की ऐ - ज़िन्दगी गले लगा ले
कुछ यूं खड़ा हूं उस मोड़ पर,
जहां जिंदगी को ज़िन्दगी से जुदा कर
तुम गई थी मेरा दामन छोड़कर।।
कुछ तो अता फर्मा ए खुदा तू मुझ यतीम पर,
की उसका हो के भी हो जाऊं तू इतना तो मेरा यकीन कर!!-
Caption पढ़िए
कहानी है हमारी रोज की।
Relate कीजिए कहा तक मिलती है आपलोगो से।-
आज फिर सुबह की झलक में तुम थी,
और हां
सावन की दोपहर की वो बारिश में तुम थी!
यूं कभी साम की सम्मा में भी आया करो ना
कितनी रातों को अपनी बालिश भिंगाऊ मैं!!
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अब ना कोई ख्वाइश है ना कोई तमन्ना !
अपनी बेज़ारियात में ही बहुत खुश हू मै !!-
तू मेरी ख़ामोशी का वो अल्फ़ाज़ है,
जिसे मैं बयां कर नहीं सकता !
तू मेरी वो पहली कलम है ,
जिसे मैं फेंक नहीं सकता!!
मेरी मन्नतों के पिरोए धागे का वो हिस्सा है तू की - 2
खुद के खुदा से तो जुदा में हो नहीं सकता।।
हालांकि,
हर दुआ हर सजदे अधूरे थे तुम बिन मेरे,
पर अब खुद से ऊंचा तुझे रख नहीं सकता!!
यूं बसर कर लूंगा मैं अपनी ज़िन्दगी तुम बिन,
खुद को हर बार - बार मैं नीचा कर नहीं सकता!!
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कुछ अस्क बहाना पड़ता है!
तुमने क्या सोचा जनाब
यहां mohobbat ऐसे ही निभाना पड़ता है!!
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