"बुरे वक्त का गुजर जाना ही मुक्ति का उत्सव है..
पीछे जो भी था, वो अपनी गति से आगे निकल गया है, अब उसे आगे बढ़ना है।
उसे 'संजीवनी' मिल गई है, और अब एक नया जीवन स्वागत करने के लिए खड़ा है"-
तुम्हारी याद आती है,
बहुत आती है..
तुम जैसा फिर कोई कभी मिला ही नही !!
तुम थी तो खुशियां थी, तुम थी तो सपने थे..
तुम ही तो इस शहर में मेरे लिए अपने थे..
तुम नही तो गम नही है,
हा लेकिन अब मेरे जीवन मे वो पहले जैसी बात नही है..
तुम्हारा होना था जैसे,
मेरे लिए किसी छोटे बच्चे को उसकी मनपंसद गुड़िया का मिल जाना..
तुम्हारा होना जैसे किसी सुहागन की मांग का सिंदूर हो जाना..
तुम थी तो फिक्र करती थी,
तुम थी तो हजारों बाते करती थी..
तुम थी तो हिम्मत-हौंसला और साहस था,
अब तुम जो नही हो इस मन मे धैर्य भी नही है..
तुम्हे ढूंढ़ती है मेरी आँखें औऱ वो बरसो पुरानी यादें !!
काश हम साथ होते,
तो मैं कह सकता तुमसे अपने दुःख, दर्द, कष्ट, और पीड़ाओं को,
और बांट लेता तुम्हारा हाथ पकड़ कर अपने ह्रदय की अग्निज्वालाओ को..
अब तुम जो नही हो तो कोई नही है,
मेरी सुनने वाला और मुझे समझने वाला..
अब ज़िंदगी से बस एक ही सवाल है...
तुम साथ क्यों नही हो मेरे....क्यों ???-
कई रात गुजारी है इस अंधेरे में
तुम थोड़ा सा नूर ले आओगे.
मेरे तकिए गीले है आंसुओ से
क्या तुम मुझे अपनी गोद मे सुलाओगे.
मैने खोया है अपनी हर प्यारी चीज को
मैं अपनी किस्मत फिर भी आजमाऊंगा.
एक शायरी लिखी है तुम्हारे लिए
कभी मिलोगे जो अकेले तो सुनाऊंगा..!!-
जिस किसी को भी
"हमने अहमियत" दी..
उसके "जीवन" से,
सदैव हम
निष्कासित ही किये गए..!!-
हमारी ज़िन्दगी है यूं तो,
इक कांटों भरा जंगल..
अगर लगने लगे मधुबन,
समझ लेना की होली है..
अगर महसूस हो तुमको,
कभी जब सांस लेते हो..
हवाओं में घुला हो चन्दन,
समझ लेना की होली है..
बुलायें पास जब तुमको,
धुनें मेरी मुहब्बत की..
जब गाये ताल पे धड़कन,
समझ लेना की होली है..
आपको सपरिवार-
होली की शुभकामनाएँ 💝-
नज़र अंदाज़ करने की वज़ह क्या है..?
बता भी दो..
में वही हूँ.,
जिसे तुम सारी दुनियाँ से बेहतर बताते थे..!!-
मैंने हर उस इंसान को झूठा कहा..
जो तुम्हारे बारे में सब सच कहा करते थे..!!-
जीवन में कौन, कब, कैसे, कहाँ बदल गया,
यह सोचने से बेहतर है,
यह चिंतन करना -
कि वो क्या 'सिखाकर' गया..!!-
तुम्हारी मुलाकातों ने कितना कुछ दिया
वादें, यादें, वक़्त और साथ..
हंसी, मुस्कुराहट, सुक़ून, खुशियां, मस्ती और आनंद,
दिलासे, हौसला-अफज़ाई, भरोसा और यकीन,
आशाएं, उम्मीद और एक बंधन..!
अंतिम समय मे बस एक वस्तु हाथ आयी मेरे
वो थी..
तुम्हारी बेरुखी से बिछड़ जाने की'पीड़ा'..!!-
मैं बेहद साधारण होकर भी कुछ असाधारण करने की चाह रखती हूं..
वो असाधारण कब होगा पता नही, लेकिन होगा जरूर, जानती हूं ।
इसके लिए मुझे सराहना के साथ-साथ भयंकर आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ सकता है, पर वो सिर्फ और सिर्फ मेरी समस्या होगी ।
कि मैं कभी किसी बात या समस्या से विचलित न होऊं....!!
नेहा तिवारी - बिट्टू-