Shivam Saxena   (Shivam Saxena)
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Joined 25 April 2017


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Joined 25 April 2017
16 APR 2022 AT 14:12

आसमाँ में उड़ने को परिंदो सा पर जानता हूँ,
मेरे मुवक्किल, मैं अदालत की ख़बर जानता हूँ,
लिखे है दस्तावेज़ों में क़त्ल के कई सिलसिले,
मसला ये की, मैं क़ातिलों का घर जानता हूँ।

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17 NOV 2021 AT 1:13

मैं टूट कर बिखरा हुआ सीसा कोई,
तुम छू लो जो फिर कोई आईना हो जाऊं।

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15 OCT 2021 AT 16:41

शबाब मौजूद यहां लिबासों में कई,
मेरे गिलास में अब कोई शराब भर दे।

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7 AUG 2021 AT 20:49

इश्क़ के शहर में हिज्र की रात गर बेघर हो तुम,
तो आओ मेरे मकबरों से जरा सा मकान ले लो
रिवायतें गर ये हो की धुएँ की फितरत ही नहीं, तुम्हे बहकाने की,
तो आओ जरा नशे का और भी सामान ले लो।

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22 JUL 2021 AT 11:18

एक नशा है उसकी आँखों में,
और, ताउम्र नशे में हम है।

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18 MAY 2021 AT 22:09

बातें जो तुम्हारी निकली है,
तो बातों बातों में जरा रात भी हो जाये।
यूँ किसी दिन, जिक्र करना और
जरा चाय वाली मुलाकात भी हो जाये।
ख्याल तो बहुत ज़्यादा ही है, तुमसे रूबरू होने का।
सिफ़ारिश ये भी कि एक सुबह मेरे हाथ में तुम्हारा हाथ हो, और जरा शबनमी बरसात भी हो जाये।

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17 MAY 2021 AT 15:03

इक्कीसवीं सदी में बहरहाल क्या क्या सख्तियां है,
घरों में खिड़कियां तो है, दरवाजों पर पाबंदियां है।
नसीब नही होती मुलाजिमों को रोटी रात की,
पेटों में चर्बियाँ तो नही, हाथों में हथकड़ियाँ है।
तैरने निकली है लाशें, दरिया के उस पार,
इस पार इंसान तो नही, तानाशाहों की जुगलबंदियाँ है।
जनाज़ों से भर चुके है, शहर के सारे क़ब्रिस्तान,
टपके जो आंसूं तो नही, भूख की सिसकियाँ है।

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15 MAY 2021 AT 22:57

सफ़ेद पन्नो पर स्याही से उतार रहा,
एक तस्वीर आंखों की, जो सोने नही देती।

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12 MAY 2021 AT 22:07

अच्छा तो अब हम आपसे ये मशवरा करते है,
जिनको इश्क़ नही आता, उनसे वफ़ा करते है।

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3 MAY 2021 AT 22:30

"How do you feel poetry ? " She asked while sitting besides me. " i feel it whenever i look into your eyes." i replied, tucking her curls over her ear.
"what do you feel now?" she said bringing her lips closer. "you are my poetry" and i had my best poem, written for her, with her; over her ears, her shoulders,her eyes, her lips and it continued... till we breathe normally..

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