Shivam Saagar   (सागर समीक्षित)
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मैं क्या हूं...... अगर मैं ये खुद जानता तो शायद लिखता ही नही कुछ यहॉ अपने बारे में |
Joined 14 June 2018


मैं क्या हूं...... अगर मैं ये खुद जानता तो शायद लिखता ही नही कुछ यहॉ अपने बारे में |
Joined 14 June 2018
13 JUN 2022 AT 21:53

उसकी कविताएं अंग्रेज़ी की
पत्रिकाओं में छपती हैं,
इंग्लिश में ऑनर्स कर रही
वो मेरे कॉलेज की
इकलौती कोरियन लड़की है
जो पूरे कॉलेज को चीनी लगती है
घरवालों ने उसका नाम मिन रखा है
और मैं उसे एकान्त में
प्रिया कह देता हूँ

मैं चाहता हूँ कि एक कविता
उसके लिए भी लिखूँ!

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9 OCT 2021 AT 12:15

सुनो !
भले ही पति तुम्हारा
मरा फ़ौज में लड़ते-लड़ते
और तुम्हारा हक़ है पेंशन
मगर बताओ --
पेन कार्ड से अब तक
खाता क्यों न जोड़ा. . . ,
जाओ पहले नम्बर लाओ_
लिंक कराओ_
जब तक पेन कार्ड न होगा
तुमको रुपया नहीं मिलेगा|

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9 APR 2021 AT 17:57

जिस दिन
सोशल मीडिया पर मौजूद
आखिरी व्यक्ति हो जाएगा
कवि _
उस दिन
अपनी सभी कविताएँ डिलीट कर
मैं अपने इंसान बने रहने की
घोषणा कर दूँगा ।

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4 MAR 2021 AT 20:04

ज़िंदगी से हार कर मुस्का रहा हूँ
मैं तुम्हारे बाद भी मुस्का रहा हूँ

मेरे भीतर इक उदासी पल रही है
इसलिये मैं बाहरी मुस्का रहा हूँ

खींच लो तस्वीर मेरी इस तरह से
मान लो मैं आख़िरी मुस्का रहा हूँ

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21 FEB 2021 AT 18:43

अखबार में छपी है फलाने की तस्वीर
सफेद कबूतर उड़ाते हुए
खबर ये भी है कि फलाने ने
मजबूर किया है कईयों को
सफेद झंडा दिखाने के लिए
और अब फलाने उठा रहे हैं लुत्फ
कर रहे हैं सैर
व्यवस्था के सफेद हाथी पर

. . . और लोग
सफेद पट्टियां बांधे
गुजर रहे हैं
लाल होती सड़कों से

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6 FEB 2021 AT 22:27

रुख़ अगर बे-हिजाब हो जाए
मेरा जीना सवाब हो जाए
तुम जो लिख दो गुलाब काग़ज़ पे
फिर तो काग़ज़ गुलाब हो जाए

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15 JAN 2021 AT 22:12

संसार इतना बड़ा है कि
दो कबूतर
उड़ते रहते हैं सारा दिन
पंख फैलाए
एक-दूसरे के विपरीत।

संसार इतना छोटा है कि
शाम ढले
दोनो कबूतर बैठे मिलते हैं
एक ही घोसले में
दिन भर के किस्से के साथ।

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8 JAN 2021 AT 1:11

सवालों के जवाबों को तलाशो तुम किताबों में
औ' मैं पूरे जहां का हाल बस तुमसे समझता हूं

मेरी तकदीर में तेरा ना होना एक साजिश है
मैं कातिब की जलन को ठीक से महसूस करता हूं

सहूलत है बड़ी इसमें कि जब चाहो तुरत देखो
तेरी तस्वीर को तुझ से नहीं कमतर समझता हूं

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8 JAN 2021 AT 0:57

दर्द - उदासी - तड़पन वाले गीतों को
धीरे-धीरे मिटा रही है एक लड़की

सुब्ह का आलम,ओस की बूंदे,सर्द हवा
और झील में नहा रही है एक लड़की

भीगी जुल्फें, झीनी चुनरी, उजला तन
सारी दुनिया भिगा रही है एक लड़की

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8 JAN 2021 AT 0:34

कैसे कोई गीत कहूँ जब कहने को कुछ शेष नहीं !

जिससे अनुप्राणित,स्पंदित यह जीवन गतिमान रहा
जिसका होना _ मेरे होने की लगभग पहचान रहा
उसकी स्मृतियों में भी अब ढहने को कुछ शेष नहीं !

आशाओं के शिखर पिघलकर जाने किसकी ओर चले
प्रेम - राग - संवेग सभी रस _ हृदय हमारा छोड़ चले
अब पाषाणों से जीवन में बहने को कुछ शेष नहीं !

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