हमने समुन्द्र में जहाज़ खोया है ,
तुम रेत में कश्तियां निकाल के खुश हो।
होश में दम तोड़ा है हमारी ख्वाब ने,
तुम बादशाह बनने के सपने देख खुश हो ।।
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मेरी मोहब्बत झूठी अगर दुनिया की मोहब्बत सच्ची है,
तो ह है हम पागल मगर दुनिया तो अच्छी है ।।-
कि जिसे धड़कन समझता रहा खुद के दिल का,
वो कही औऱ धड़क रहा किसी औऱ के लिए ।।-
जो तुमसे कहनी थी बातें वो अधूरी रहेंगी,
ज्यादा लिखता कम लिखता आखिर मैं कितना लिखता ?
खुद लिखता खुद पढ़ता खुद सुनता खुद महसूस करता ,
अपनी जगह तुमको रख के तो आखिर मैं क्यों लिखता ।
अंधेरी रात तनहाइयों का आलम को अपनी कलम से कितना लिखता ।
ठंडी हवा की थपकी में अंतरमन में ढूंढता तुमको मैं खुद आखिर तुम क्यों लिखता है ।
नज़रों का चमक ,फूलो की महक ,दिल का सबक इतने करीब आके मैं मुझमे तुम या तुझमें मैं लिखता ।
मीठी से कड़वाहट लिए सुबह शाम को मैं तुम बिन क्या लिखता,
ऊँची पर्वतों से गिरते झरने के पानी को नदी से मिलते उसकी रवानी लिखता या जलती बुझती सी किरणों सी तुमहारे ज़िन्दगी की कहानी में मैं खुद की जवानी लिखता ।
जो तुमसे कहनी थी बातें वो अधूरी रहेंगी,
ज्यादा लिखता कम लिखता आखिर मैं कितना लिखता ?-
तरक्की मिली एड़िया चाटने से जिसे
वो इंसान वही रुक गया,
कोई इधर झुक गया कोई उधर झुक गया,
बईमानों का ईमान है कागज़ के टुकड़ों की तरफ झुक गया ।।-
चिखती हुई उसकी आवाज़ आ रही थी मुझ तक,
झूठ बोल गया मैं ये कह के की मेरी कान खराब है ।।-
अकेले थे भीड़ में कभी,
अकेले है अकेले मे अभी ।
वक़्त बदला न तन्हाइयों का आलम,
बेवजह बेचैन खोए हुए है सब ।।
खामोशियों में चिखती अपनी ही आवाज़,
बुझ गई जो जलती सी चिराग़ ,
बादल में छिप गए आसमान के तारे सारे,
इस सफर में चलते चलते पर गए छाले,
भटक के जुगनू की राह में गिर गए हम साले,
सफ़ेद चेहरे के पीछे हमारे दिल काले ।।-
मुझ बिन रोशनी क्या प्रबल अंधकार का साया हू ,
कमज़ोरों का ढाल हू निर्बलता का काया हू ,
जलन नफरत इर्ष्या इन सबके लिए इनकार लाया हूं ,
तपन जतन लगन जोश डूबा के आया हू ।।
मैं हूं मिट्टी से बना मुझ में सुनहरी महक अभी बाकी है,
मुझे तो बस गिला किया है निर्मित आकार तो अभी बाकी है,
मैं विचारो सा सस्ता कठिन मैं इसकी आज़माइश सा,
मैं असमान के अंत सा मानो मैं समुन्दर की गहराई सा ।।-
हवा हू हर वक़्त रुख बदलता हू मैं ,
अंधेरी रात का खामोश सन्नटा हू बहुत दूर तक पसरा हू मैं,
ग़म की ठोकर खा के आसमान के चादर तले कभी इधर कभी उधर बहुत भटका हू मैं।।
अरमाँ की आग मे खुद को लपटे हुए बहुत झुलसा हू मैं,
नामुकम्मल आरजुओं की आर में मन को ऊपर नीचे करते हुए खुद को बहुत रगड़ा हू मैं,
कोहिनूर सी चमक कोयले में डाल के सूरत ऐ हकीकत अपनी देखने को बहुत तरसा हू मैं ।।-
रहा अंदाज़ जुदा सबसे तो काफिर कहते रहे मुझको,
सबसे अलग कह के सबसे अलग करते रहे मुझको ।।-