अश्रु पुष्प हैं चढ़े तुम्हारे,
चरणों पे प्रभु राम लला,
रक्त पुष्प भी अवध की माटी,
में आकर के राम हुए,
धन्य हुए हम राम लला,
जो तुम्हें विराजे देख सके,
बुद्धि विवेक विज्ञान सभी,
चरणों में सब साष्टांग हुए,
अथक शक्ति को बांध के,
तुम यूं मंद मंद मुस्काते हो,
वहीं विराजो कलियुग भर,
आशीष यही अब पाते हो !!-
ये बाएं हाथ की कलमों वाले,
प्रभु से जीत सकेंगे क्या ?
अ युध्या से युद्ध करेंगे,
जीवित पूर्ण बचेंगे क्या ?
रावण जीत सका ना जिनसे,
उनसे जीत सकेंगे क्या ?
हनुमन भगवन ले पर्वत उड़ते
ये उनपे भार बनेंगे क्या ?
जो मृत संजीवनि खा कर बैठे,
उनको मार सकेंगे क्या ?
ये हरि द्रोही हैं अभिमानी हैं,
हमसे बात करेंगे क्या ?
राम हमारे साथ रहें तो,
दुष्ट बिगाड़ करेंगे क्या ?-
मैं कहता कम हूं ज्यादा समझना,
होंठों पे नहीं है जो बात वो भी समझना,
जो इशारों से उलझ गया हो वो भी समझना,
तुम्हारी मुस्कान के लिए कहा झूठ भी समझना,
तुम्हारे भले का कड़वा सच भी समझना,
तुम्हारे होने की खुशी को समझना,
तुम्हारे ना होने के दर्द को भी समझना,
बस मिलने के इंतजार को समझना,
मेरी आंखों की आस को समझना,
मेरे गुस्से व्यथा और आंसुओं को समझना,
बहुत कुछ नहीं कह पाऊंगा,
इन शब्दों की कमी को मेरे यार समझना !!!-
सौंदर्य सुकून है,
किसी की बाँहों में,
किसी पेड़ की छांव में,
किसी के गोद में रखे सिर में,
किसी के घर में,
किसी की माँ के हाँथ के स्वाद में,
किसी प्रेमिका की पुकार में,
किसी की मुस्कान में,
किसी फूल की महक में,
किसी सितारे की चमक में,
कभी धूप कभी चँव में,
कभी पहाड़ के गांव में,
सौंदर्य तो सिर्फ़ सुकून है।-
सत्य भला है झूठ धुंध से,
सत्य भला शत कोटि शिखर से,
धुंध रूप है झूठ बेल का,
धुंध मूल है कष्ट बेल का,
धुंध शब्द की कटू जलेबी,
धुंध सत्य से परे हवेली,
धुंध बने षडयंत्र की थाली,
धुंध है सुख संग निगलने वाली,
सत्य कहो, स्पष्ट कहो,
न कहो धुंध सी बातें,
धुंध रहे जब जिव्हा पर,
तब व्यर्थ धर्म की बातें-
ये प्रश्न उत्तर तो महज,
एक खेल था और खेल है,
कुछ जानना ही था तो,
किताबों से उठा, जग पढ़ न लेता,
तथ्य अपने चुन के सबने,
खोल रक्खे युद्ध के घर,
के मैं सही और सब गलत,
यह मानने तक कर बहस,
गर शांति सबको चाहिए तो,
क्यों कोई भी फौज होती, और
क्यू कोई हथियार लेता !!-
लाओ तुम्हारा झोला ले लूं,
उसके भार से कंधे झुक गए तुम्हारे,
थके थके से लगते हो,
सांसें भी लंबी भरते हो,
न जाने झोले में कैसा भार है,
न जाने तुम्हारी क्या मजबूरी है,
पर आओ मेरी गोद में सिर रख दो,
कुछ आंसू हों तो वो भी मत रोको,
जो भी है झोले में तुम्हारे,
यहीं लिए बैठा हूं, थोड़ा आराम कर लो,
तुम्हारा हूं तुम्हारे लिए कितना भी रुक लूंगा,
तुम बस थोड़ा सुकून ले लो !!-
थोड़ा सा रुक जाओ तो हम,
अपनी पराई कह सकें,
कुछ तुम नया ताजा कहो,
कुछ हम भी मन का बोल लें,
तुम मेरे अपने हो,
थोड़ा मन का परदा खोल लें,
ये ही सुकूं है जिंदगी का,
बातों के रस में डूब लें,
ना जाने फिर फुरसत के पल,
आ करके अपने तन लगें,
आओ दो पल बैठ कर,
मन की व्यथा का मर्म लें,
खाना लगा है गर्म है तो
खा के जाना है तुम्हें,
आए हैं अरसे बाद तो,
जाने की जल्दी न करें।-
तुम वक्त पे आए हो,
थोड़ा बैठ लो,
थक गए होगे,
जरा सी सांस लो,
मीठा भी है,
पानी भी है,
गद्दी लगी कुर्सी भी है,
चाय, ठंडा, क्या ज़रा,
वो भी हमें बतला भी दो,
आराम से तुम टेक लेकर,
पीठ कुछ सीधी करो,
चाय में है दस मिनट,
ठंडा भी उतना वक्त लेगा,
जो भी तुमको तृप्ति दे,
वो ही हमें तुम बोल दो,-
के चाहता कोई और भी शायर बने कविता लिखे,
क्यू हम अकेले राह में चलते रहें गिरते रहें,
कुछ तुम लिखो कुछ हम लिखें दुनिया के सच्चे अक्स को,
इक दूसरे की आंख से दुनिया को हम पढ़ते रहें
____________&__________
एक और शायर शामिल होगा फेहरिस्त में,
बांट लेंगे गम और खुशियां चंद कविताओं की किश्त में,
वो जो मजरूह से घूमते हैं अकेले अकेले,
रो लेंगे या हंस लेंगे एक दूसरे के इश्क में,-