अक्सर सफ़र कितना भी मुश्किल हो,
आसान हो जाता है अगर दीदार - ए - मंज़िल हो।-
जब तांडव करते शिव भोले
धरती और अम्बर भी डोले
हांथ में डमरू डम डम बाजे
मस्तक पे है मयंक विराजे
वो भोला भाला सीधा साधा
आधी नारी ,पुरुष है आधा
गंगा की शोभा जटा में उनके
मस्त मलन वो अपने धुन के
जीवन है वो मरण भी वो है
है बेघर फिर भी शरण भी वो है
नाम शिवम् पहचान शिवम्
अद्भुत हैं ये भगवान शिवम्
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रह के ख़ुश अब तो करना है ग़म का मफ़र
काटना है यूँ ही ज़िंदगी का सफ़र-
वक्त भी कहाँ रुका किसी के ए'तिराज़ से
जो अज़ीज़ थे बदल गए बड़े लिहाज़ से-
मिल के ग़ैरों से मुझको जलाता रहा
जिसको अक्सर मैं अपना बताता रहा-
निहारा था बड़ी शिद्दत से उसने इक दफ़ा मुझको
तभी नज़रों में उसकी मैंने पूरा खो दिया ख़ुद को-
बहुत गहरा हूँ मैं बोलो कहाँ तक जाना चाहोगे
है बेहतर ये किनारा कर लो वर्ना डूब जाओगे-
रंग पड़े तो क्यों निकलती बुरी बोली है
पटक के रंग देंगे, बुरा न मानो होली है
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रंग से रंग मिले, हो जाये मन का मेल
इस पावन त्यौहार पे कुछ ऐसे होली खेल
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मां गंगा के तट पे मैं जब,
माथा टेका करता हूं,
प्रयाग की धरा पे जन्मा हूं
गर्व इसी का करता हूं।-