Shivam Mishra   (शिवM)
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Joined 29 July 2019


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9 HOURS AGO

From sleepless nights to skipped meals,
They save lives while ignoring their own.
Behind every white coat and stethoscope lies a unique story,
But they all share one truth: They deprioritize themselves to prioritize us.

It’s easy to say “It’s their job, and they’re paid for it.”
But can we endure even one 24–48 hour shift, With no sleep, skipping meals, and zero appreciation?

In India, doctors often work 2–4× more than recommended hours,
Usually without rest, without support, and even without recognition.

Happy Doctor’s Day - To every healer who chooses people over personal comfort - every single day.

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10 MAY AT 16:10

चारदीवारी के अंदर बैठकर,
शांति की अभिलाषा हो अथवा युद्ध की आकांक्षा,
दोनों ही व्यर्थ है,
सार्थक है केवल!,
उन वीरों के प्रति कृतज्ञता,
जो सरहद पर हमारी "चारदीवारी" की सुरक्षा लिए खड़े हैं,
उन स्वजनों के प्रति सहानुभूति,
जिन्होंने किसी अपने को खोया है,
उन साहसी जनों के प्रति सम्मान,
जो इस संघर्ष के परिणाम को सबसे करीब से देख रहे हैं!

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28 FEB AT 0:47

कुछ प्रश्न, सदैव अनुत्तरित रहे,
परन्तु पूर्ण भी,
मानो कह रहे हों...
यदि नैतिक रूप से उत्तर मिल भी जाए,
तो क्या सच में चैन से सो पाओगे?।

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1 NOV 2024 AT 11:56

जीवन के भीतर,
"जीवन का अर्थ" खोजने का प्रयास,
कुछ वैसा ही है,
जैसे समुद्र में गोते लगाकर नमक खोजना,
"अर्थ", सूचक है अंत का,
और जीवन हो अथवा समुद्र,
दोनों का कोई वास्तविक अंत नहीं है।

"चरैवेति चरैवेति" (चलते रहो, चलते रहो) - ऐतरेय ब्राह्मण उपनिषद|

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14 AUG 2024 AT 1:43

सफ़लता एवम असफलता के मध्य,
अतीत एवम भविष्य के परे,
जीवन, इक प्रयास है,
प्रयास है स्वयं के अस्तित्व को खोजने का,
उन सभी संभावनाओं में, जो "जीवन" के ईर्द -गिर्द हैं,
जीवन जटिल नहीं है,
जटिल है ये संभावनाएं!

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27 FEB 2024 AT 23:00

"Woman!, from my eyes"

When I look behind, to the journey of my life,
I recall my failure of living,
Of the bunches of common, but selfless love & care,
The love, which can neither be sketched, nor be defined,
But can be felt, from the core of heart,
If only, I could feel that love,
Which a neonate carries and reflects,
If only, I could realise that care,
Which a granny showers and endures,
If only, I could be enough capable,
To feel blessed, and live the blessings,
Of a mother, a sister, a lover!,
My spirit hangs heavy, like a wilted flower,
In the pain of, being untouched from the blessings of "womenhood".

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31 JAN 2024 AT 23:56

& he kept chasing his dreams,
Until his dreams came true,
Then he made a few more dreams,
& worked harder to achieve those,
Lately and luckily, those were achieved too,
But the urge to chase was still there,
Though he wanted to live,
But again!, he made a few more dreams,
& kept working till the last breath,
That urge to chase had replaced the dimensions of his living,
there was a life, without any life!.

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25 SEP 2023 AT 0:07

उलझे हुए, और बेगाने ही अच्छे थे,
जो बीत गए, वो जमाने ही अच्छे थे,

चलते शहरों में अक्सर, जिंदगी ठहर जाती है,
ठहरे हुए गांवों के, नज़राने ही अच्छे थे,

समझदारी के चोले में, सुकून खो बैठे,
इक वक्त था जब, परवाने ही अच्छे थे,

हर रिश्ते में सौदे, और लफ्जों में चालबाजी,
ऐसी रिवायतों से तो, अनजाने ही अच्छे थे,

पनाह की नर्म चादर में, यूं सो भी न सके,
खुद्दारी के वो जर्जर, सिरहाने ही अच्छे थे।

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8 SEP 2023 AT 1:56

समय कठिन,विषम संयोग,एव मनोभाव प्रतिकार है,
"संबंध-प्रेम" से भ्रमित, आज़ युद्ध इक "विचार" है,
हो ललाट में लिखित, भले! फल पूर्ण भाग्य का,
या हस्तरेखाओं में अंकित, जीवन के साक्ष्य का,
कर्मयोग पर अडिग, ये पथिक, निष्ठावान है,
देह-समाज से परे, स्वधर्म में विद्यमान है,
न चोटियों, न पहाड़ियों, न ऊंचे पेड़ की शाख पर,
है स्थिर ये हृदय मेरा, इक्षाओं की राख पर,
अब हो गर ये युद्ध जो, विधि के विधान से,
है स्वीकार पुनः पूर्णतः, अंत:करण के सम्मान से।

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21 AUG 2023 AT 1:06

घर और मां!

कच्ची उम्र में ही घर की पक्की दीवारों से जंग छिड़ गई,
जंग थी उन दीवारों के पार जाने की,
इस जंग में, सारा परिवार मेरे साथ था,
बस मां अब भी उन दीवारों के सहारे ही खड़ी थी,
शायद, उन दीवारों के साथ भी!,
इस जंग को जीतने की इक ही तरकीब थी,
दीवारों से पीछा छुड़ाया जाए,
सो मैंने दीवारों को फांद कर, इक नई राह बनाई,
और फिर वो दीवारें कहीं पीछे छूट गई,
और उनके साथ मां भी,
जो उन दीवारों के सहारे खड़े होकर मुझे कहीं दूर जाते देख रहीं थी,
अब न घर है, न मां,
पर कुछ नई दीवारें जरूर हैं, जो अक्सर पूछती हैं मुझसे!,
कि आख़िर पुरानी दीवारों में क्या अलग था? ।

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