ओला पर बैठा एक भोला, रास्ते मे उसे मिला एक छैला,
छैला संग भोला ले चला ओला,
शहर से दूर पहाड़ों के पार,
जहां बस्ता है एक अनोखा गांव,
गांव है बड़ा अजीब, जहां रेहते है लोग बड़े हसीन,
यहाँ टेंशन का गुब्बारा उड़ नही पाता है, और दुखीयारा दुखी हो नही पाता है,
भोला हर रविवार यहाँ आता है,
नदी मे घंटों तक समय बिताता है,
हंसी की पेटी में खुशियो के गुब्बारे भर
वह राह राह उड़ाता है
भोला इस तरह एक जिंदगी मे दो जीवन जी पाता है।
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