तुम्हारे भी हाथ जुड़ जाये जब कही भजन हो
मेरे भी दिल मे सम्मान हो जब कही अजान हो जाये
कभी मेरा गमछा भी तेरी शान बने
और कभी तुम्हारी टोपी मेरी पहचान बन जाये
आओ हम तुम कुछ ऐसे मिले
की एक सुन्दर हिंदुस्तान बन जाये 🇮🇳🇮🇳
होली की शुभकामनायें ❤️
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आसान नहीं है शिव का हो जाना
निर्जन पर्वत पर वास है
और भूतों के बीच डेरा है
कोलाहल से भरी रात है
और चित्कार से भरा सवेरा है
खाल लपेटे कमर पर और नंग तन है
वृषभ की सवारी है और सांप लपेटे गर्दन है
आँखों मे अग्नि है और नीलकंठ मे विष भरा है
चन्द्रमा मेरे मुकुट है और पैर के नीचे पूरी धरा है
भाँग धतूरा सा आहार है मेरा
क्या तुम भी वही आहार करोगी?
शव भस्म है श्रृंगार मेरा
क्या तुम वही श्रृंगार करोगी?
आसान नहीं है शिव का हो जाना
शिव का होना मतलब खुद शिव हो जाना
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तुम मुझे बस इतना सा परेशान न करो
यु ही मेरा रास्ता आसान न करो
थोड़ा सलीके से हत्या करो मेरी
देकर आसान मौत
मुझ पर इतना एहसान न करो
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अगर बदलना हो मंद पड़ी 'तकदीरो' को ।
तो सपनों को जरा सा जीवित रखो ।
और निद्रा को जलाकर गढ़ा करो ।
ज्ञान की तेज धार 'शमसीरो' को ।
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-- प्यार की भाषा हिन्दी--
प्यार की 'भाषा' हिन्दी है।
सत्कार की 'भाषा' हिन्दी है।
शांत पड़े 'नाद' में
'उन्नाद' की भाषा हिन्दी है।
अपने अच्छे 'संवादों' में
'इज़हार' की भाषा हिन्दी है।
'प्यार' की भाषा हिन्दी है।
'सत्कार' की भाषा हिन्दी है।
शांत पड़े सागर में
प्रबल 'ज्वार' की भाषा हिन्दी है।
नई नवेली नायिका का
'श्रृंगार' की भाषा हिन्दी है।
और नये इश्को में
'संचार' की भाषा हिन्दी है।
'प्यार' की भाषा हिन्दी है।
'सत्कार' की भाषा हिन्दी है।
' 14 सितंबर ' हिन्दी दिवस
की शुभकामनाएं
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तेरे जाने के बाद भी
दिलों में सदा जिंदा तेरी मूरत होगी
फिर कभी लौट आना इस देश प्यारे
शायद हमें आगे भी तेरी जरूरत होगी
RIP: ATAL JEE (1924-2018)-
युद्धों के स्वामी हैं हम ।
जन्मजात स्वाभिमानी है हम ।।
हम कभी ना विचलित होते ।
इन छोटे-मोटे वारो से ।।
जरूरत पड़ी तो लाल कर देंगे धरती ।
शहादत और संहारो से ।।
फिर रो उठेंगी दिशाएं ।
तुम्हारी मां बहनों के क्रंदन से ।।
कांप उठेगें धरती -आसमान ।
सिहर उठेंगी ये हवाएं ।
प्रचंड - प्रचंड प्रहारों से ।।
मना हो रहा मत खेलो ।
द्विधारी तलवारों से और धधक रहे अंगारों से ।।
वरना वसुधा हल्की हो जाएगी ।
तुम्हारे बेवजह के भारो से ।।
इंकलाब ज़िंदाबाद-
गोर आये - मुगल आये - तुर्क और अफगान आए।
न जाने कौन-कौन सुल्तान आए।
फिर फिरंगियों जैसे मेहमान आए।
पर हम कष्ट का एहसास देकर ।
खुद इतिहास बनकर रह गये ।
जो मिटाना चाहते थे ।
वो खुद सिमट कर रह गए ।
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बस हरे रंग से श्रृंगार करो तुम
सावन के 'हरे' बहारों में
बेवजह लिपिस्टिक काजल बह जाएंगे
रिमझिम - रिमझिम बौछारों में-
काश ! कोई ऐसी हवा चले
फुल बने हर कली-कली
लोग कुछ यूं मिले जुले
कि इश्क खिले हर गली-गली-