There are basically two types of struggle an artist faces,
One is, struggle to grow financially as an artist,
And second is to struggle to retain oneself as an artist!
Former is easier because no one tries to hunt you down,
But later one is literally fatal!-
Writer
Poet
Palmist
Astrologer
कितना पस्त हुआ तू आदम ऐब देख देख दुनिया के,
छोड़ वो आईना बंद कर आँखे,चल अब खुद का रुख करें!
कितने झूठ बोले गये शास्त्र छू छूकर अदालतों में,
अब जिन्हें सच सुनना है वो मयकदाओं का रुख करें!-
यह देह बड़ी पवित्र है,समस्त पापों को करने में सक्षम यह देह आत्मा की मुक्ति का एकमात्र माध्यम है,मगर आत्मा को इस देह में छुप कर रहना पड़ता है,मगर हम संसार में आकर आत्मा को अनसुना करते हैं, हम कानों और आंखों से धर्म को निकट स्थित मष्तिष्क तक पहुँचा देते है,
ये देह की चाल है,की हृदय आंखों और कानों से दूर है,क्योंकि हृदय आत्मघाती है,और मष्तिष्क अस्तित्व बचाए रखने को आतुर,
आत्मा की अभिव्यक्ति है मष्तिष्क में पैदा होता संदेह,मगर हम संदेह को सामाजिक निषेध मानते हैं, उस पर इतना वजन रख देते हैं,और आत्मा की अमरता की बात करते रहते हैं,हमारे अपने अस्तित्व को बचाए रखने की प्रणाली ही आध्यात्मिक कीमत है!
हम मंज़िल को भूल वाहन के सुख में लीन हैँ,
संदेह को दिमाग में ही दबाकर मारने की चेष्टा करते हैं,मगर यह हो नही सकता,आत्मा की अभियक्ति को नकार सकते हैँ, मिटा नहीँ सकते,संदेह को दबाने से हमारा विश्वास रोगी हो जाता है,
आत्मा चाहती है की हम संदेह से श्रद्धा तक पहुँचे,क्योंकि इस रास्ते पहुंचते ही मोक्ष है,
मगर बुद्धि कृत्रिम श्रद्धा बना के बैठा देती है,
अस्तित्व के संरक्षणवाद की कीमत है आत्मा की मुक्ति!-
There is always a sort of intangible cost for everything you acquire,
It may be psychic cost,emotional cost ,moral cost or spiritual cost
Having possibility to exist in physical form you pay a psychic cost of being a son/daughter of a father,as by this you have received some natural instincts to reproduce
To secure survival of your existence you pay emotional cost of being a child of a mother,as by this you have natural sense of ability to feel heartly emotions!
And when you are on your own moving towards your material ambitions,you will have to pay some moral cost,conciously or unconsciously,as by this you will fight for your own survival from rest of the all breathing race.
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कमज़ोर मनुष्य दो तरह के होते हैं,एक जो कभी क्षमा करते नहीँ,और दूसरा जो क्षमा माँगते नहीँ!
शाक्तिशाली मनुष्य भी दो तरह के होते हैं एक जो क्षमा करते हैं और दूसरा वे जो क्षमा माँगते हैं!-
Wisdom always comes as an accident
when one mistakenly went on the
path of virtue or on the path of sin!
You can chose knowledge,
not wisdom!
And knowledge is either a
mad elephant or a toothless lion!-
एक जापानी आदमी के घर रात में चोर घुस गया,आदमी ने उसे पकड़ने के लिए राष्ट्रगान बजा दिया,चोर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया और पकड़ा गया,
मसला कोर्ट पहुँचा और फैसला हुआ की मकान मालिक को राष्ट्रगान का अपमान करने के लिए सजा हुई!-
भक्त ईश्वर का दायित्व है,
जिनके पीछे उसको आना ही है,
ईश्वर जानता है की ये अपना ध्यान नही रखेगा,
तभी वो प्रह्लाद के पीछे भागता फिरता है,कभी आग से बचाता,कभी खाई से बचाता,भक्त भगवान को अबोध भाव से नचाता है,और भगवान तो नाचने को आतुर,
वो मीरा का ध्यान रखता है,की इसको कोई विष देगा तो ये पी ही लेगी,कोई सर्प देगा तो ये माला को तरह पहन ही लेगी,इसीलिए उसे मीरा के आसपास ही रहना पड़ता है!
भक्त ईश्वर को कैद कर लेते हैं,मगर बिल्कुल सहज निश्चल और प्रेम भाव से!
ईश्वर की एक नहीँ चलती उसके भक्त के आगे,
सहज निष्छल भक्ति ही ईश्वर की कीमत है,उसका दाम है,और इसी से खरीदा जा सकता है उसे,वो तो बिकने को बेचैन है!
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भक्त भगवान का मालिक है,
दास नहीँ, चापलूस नहीँ,
भगवान को चापलूसी क्यों पसंद आयेगी,
स्तुतियों भजन आरतियों में जो शब्द होते हैं,वे कोई सार्वभौमिक नहीँ है,जो हर व्यक्ति पढ़े,
यह बिल्कुक वैसा है,की कोई गीत सुनकर उसका स्थाई भाव आपके मन में कुलाचे मारने लगे,देशभक्ति का गीत सुनकर जो देशभक्ति जागती है,वो अस्थाई है,
प्रेम के गीत सुनकर जो प्रेम आप स्वयं पर आरोपित करते हैं,वो प्रेम झूठ है,
कोई कहता है ईश्वर से की मैं अज्ञानी तुम अन्तर्यामी,क्या वाकइ खुद को अज्ञानी मानते हो की बस स्तुतियाँ दोहरा रहे हो,समाज में तो अपनी समझदारी पर बड़ा इतराते हो,मजाल है कोई तुम्हे मूर्ख बना ले,या किसी वस्तु का एक रुपये भी ज़्यादा ले,
गाते हो जो रूखा सूखा दिया हमें उसका भोग लगा जाना,और बिरयानी में मुर्गे की टांग ढूंढते हो!
किसको मूर्ख बनाते हो!
मनुष्य योनि को इतना महिमामंडित क्यों करना,
झूठ है की भगवान को सिर्फ मनुष्य योनि में पाया जा सकता है,
जब गजेंद्र को मोक्ष प्राप्त हो गया,गजेंद्र छोड़ो,ग्राह को भी हो गया,ईश्वर को वाणी और शब्द में कोई दिलचस्पी नहीँ!-
मगर फिर धर्म से फिसल कर मानव फिर अज्ञानता के अन्धकार में गिरा,
क्योंकि वह अपने पूर्वजों की तरह धर्म की बुनियाद नहीँ समझा,बस उस समंदर के छिछले किनारे पर ख़ुद को भिगोता रहा,ना अध्यात्म का रहा ना विज्ञान का,
अब फिरसे वही यात्रा करनी है मानव को!
यहाँ यह बात महत्वपूर्ण है की हम अध्यात्म और विज्ञान में भेदभाव कर सकते हैँ,इनमे से अच्छे बुरे का चुनाव कर सकते हैं,
क्योंकि इस युग में हमने विज्ञान का बहुधा विकृत रूप ही देखा है,
और अध्यात्म का सरल और शुद्ध रूप,
मगर अतीत में कई दौर आया जब बुरे लोगों ने अध्यात्म का दुरुपयोग करके इसे भी विकृत करने का प्रयास किया,तप अध्यात्म का ही रूप है,राक्षसों द्वारा वर मांग कर आतंक मचाने की कोई ना कोई कथा सुनी ही होगी,
अर्थ या है की पहले मानव आंतरिक जगत की ओर अधिक सक्रिय था तभी अध्यात्म चुनता था,और अब बाह्य जगत की तरफ तभी विज्ञान चुनता है,
इस युग में अध्यात्म के मार्ग से बल पाना दुष्कर है,
समर्पण दोनो ही मांगते है!
क्योंकि दोनो सामर्थ्य में समान हैं!-