तन-धन खोने से डरता है, मन कहीं ना खोए, फल की आशा रख अगर, बबूल ना तूने बोए, साज सजावट भ्रम है अंतर्मन जो सुंदर होए, देह तो एक दिन जलना है, रख जितना संजोए।।
मुझे तकलीफ नहीं जुदा होने से, तकलीफ है बस तुझे खोने से, में दूर भी रह लेता मगर, मुझे तकलीफ है तेरे रोने से, जिंदा रहूं या ना रहूं कल, मुझे डर है सुबह होने से, और बिछड़ कर भी जो खुश न हो तू, तो तकलीफ है जिंदा होने से।। ~२
पैरों के लिए चादर थी छोटी, सपने बुन रहे थे मोती, लांग देता मैं सभी समंदर, खाई अगर डर की ना होती, यूं तो खड़ा हूं पर्वत सा मैं, मन में ज्वाला मुखी समाए, राख करूं खुद से ही खुद को, जो धरती में कंपन ना होती, लांग देता मैं सभी समंदर, खाई अगर डर की ना होती।।
न जाने क्या इरादे थे उसके, नजरें बेचैन सी रहती थीं, होठों पर लगे हों ताले जैसे, बातें अनजान सी रहती थीं, चल - चल कर पड़े पैरों में छाले, न जाने कितना बोझ संभाले, मंजिल का तो पता नहीं, राहें गुमनाम सी रहती थी ।।
उसे लिखने के लिए, मुझे जवाब चाहिए, दिए जो सारे आंसू, उनका हिसाब चाहिए, और चन्द पन्नों में ही सिमट गई ये दास्तां, जाकर कह दो उसे, मुझे पूरी किताब चाहिए।।
मैं कितना अहमक था जो ना उसकी किफायत को समझा, ना शराफत को समझा, ना नज़ाकत को समझा, और खुले आसमान में तो रौशन था जहां उसका, मैं बंद दरवाज़ों के पीछे की कयामत ना समझा।।
कर मत इनकार तू हंसने से, कर मत इनकार तू सपने से, मेहनत की भट्टी में झोंक स्वयं को, कर मत इनकार तू थकने से, और जोश बढ़ा कर होश में आ, कर मत इनकार तू जगने से, जीवन संग बढ़ता रहे कदम, कर मत इनकार तू चलने से।। ~२
ये घाव जो अंदर ही अंदर सता रहा है, ~२ ये मेरी आने वाली जीत का जश्न मना रहा है, दर्द तो देता है ये बेहिसाब, क्योंकि, ~२ इरादों में पिघला कर कामयाबी का लोहा बना रहा है।।