किसी शहर से जाते वक्त,
कोई एक काम
अधूरा छोड़ देना चाहिए,
ताकि
फिर लौटने के बहाने साथ रहें!!-
आहिस्ता चल जिंदगी,अभी कुछ कर्ज़ चुकाना बाकी है।
कुछ दर्द मिटाना बाकी है,कुछ फर्ज निभाना बाकी है।
रफ़्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गये,कुछ छूट गये।
रुठों को मनाना बाकी है,रोतों को हसाना बाकी है।
कुछ हसरतें अभीं अधूरी है,कुछ काम भी और जरुरी है।
ख्वाईशें जो टूट गई इस दिल में,उनको दफ़नाना बाकी है।
कुछ रिश्तें बनकर टूट गये,कुछ जुडते-जुडते छूट गये।
उन टूटे-छूटे रिश्तों के जखमों को मिटाना बाकी है।
तू आगे चल मै आता हूँ,क्या छोड तुझे जी पायेंगे?
इन सांसों पर हक़ है जिनका,उनको समझाना बाकी हैं।
आहिस्ता चल जिंदगी,अभी कई कर्ज़ चुकाना बाकी है.....-
भले ही झगड़े, गुस्सा करे
एक दूसरे पर टूट पड़े
एक दूसरे पर दादागिरी करने के लिए
अंत में हम दोनो ही होंगे।
जो कहना है कह ले
जो करना है कर ले
एक दूसरे का चश्मा और लकड़ी ढुंढने में
अंत में हम दोनो ही होंगे।
मैं रूठूं तुम मना लेना
तुम रूठो मैं मना लूंगा
एक दूसरे को लाड़ लड़ाने के लिए
अंत में हम दोनो ही होंगे।
याददाश्त जब सिमटेगी
आँखें जब धुंधली होंगी
एक दूसरे को एक दूसरे में ढुंढने के लिए
अंत में हम दोनो ही होंगे।-
किसी रोज
मैं तुम्हारे लिए पूरा पहाड़ बनाऊंगा
उसकी छाती पर चीड़ के पेड़ लगाऊंगा
हर उस दिन के लिए एक
जिस दिन मैं तुमसे मिल नही पाया
वो पहाड़ हरी घास से ढका होगा
उतना ही जितना ढक कर रखते हैं
तुम्हारे ख्याल मुझे-
किसी सुबह मैं देर उठुं
और तुम घर के आंगन,
में बाल बनाती मिलो
पूछो कि,
क्या ये वक़्त है उठने का
तुम्हारी मीठी डांट के बीच मैं चेहरा धोता जाऊं
फिर तुमसे पूछ कर
मैं गैस पर दो चाय चढ़ाऊँ।-
कुछ ख्वाहिशें इसलिये भी अधूरी रह गयी
के वक़्त तो बहुत था मगर उतना सब्र नही था-
दिन छोटे और रातें लंबी हो चुकी हैं
मौसम ने यादों का वक़्त बढ़ा दिया है।।-
के घर के पुराने दराज में
आज एक लिहाफ मिला,
उस पर पड़ी सिलवटे,
बता रही थी
जैसे कुछ पुराने मरासिम्
सिमट कर रह गए हैं उसकी तह में,
चलो आज उन्हे जाड़े की
नरम धूप लगवा दें!!
मरासिम् - संबंध*-
दर्द इतना तो कटाने से ना होगा,
जितनी तकलीफ मुझे सर को झुकाकर होगी,
मेरी आंखें भी जाती है तो बेशक जाए,
बात सूरज से मगर आँख मिलाकर होगी।।-
उसकी एक नजर उठे, तो सुबह
झुके तो शाम हो जाए
यूं एक अदा में लम्हों का,
आना जाना तो नही होना चाहिए!!
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