थक गई है देह, हैं निर्जीव आँखें
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
प्यार औ परिवार है या
नेह अपनों का सलोना,
टूटते मन का सहारा
ज़िन्दगी है या खिलौना।
खेलती है ज़िन्दगी जैसे हो सपना!
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
शिव है या पत्थर है कोई
या कि केवल आस्था है,
फूल की बगिया है या
जीवन कँटीला रास्ता है।
प्रश्न हैं मन में कई पर मौन स्वर में!
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
देह की देहरी पे कब तक
प्राण का बन्धन रहेगा,
या तुम्हारे आगमन तक
यह प्रतीक्षारत रहेगा।
प्रिय कहो, कब तक तपस्या में है तपना!
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
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थक गई है देह, हैं निर्जीव आँखें
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
प्यार औ परिवार है या
नेह अपनों का सलोना,
टूटते मन का सहारा
ज़िन्दगी है या खिलौना।
खेलती है ज़िन्दगी जैसे हो सपना!
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
शिव है या पत्थर है कोई
या कि केवल आस्था है,
फूल की बगिया है या
जीवन कँटीला रास्ता है।
प्रश्न हैं मन में कई पर मौन स्वर में !
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
देह की देहरी पे कब तक
प्राण का बन्धन रहेगा,
या तुम्हारे आगमन तक
यह प्रतीक्षारत रहेगा।
प्रिय कहो, कब तक तपस्या में है तपना!
पूछती हैं, है यहाँ पर कौन अपना!!
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रात घने अँधियारे में जब, ख़ुद को निरा अकेला पाया!
मन में एक प्रश्न आ कौंधा, जीवन में क्या पाया!!
संघर्षों की चट्टानों से,
गढ़ना खुद को निज हाथों से
और परिस्थिति के साँचे में,
ढल जाना जस मिट्टी का घट।
लेकिन मिट्टी का घट निज को बचा कहाँ तक पाया!
मन में एक प्रश्न आ कौंधा, जीवन में क्या पाया!!
हँसी चन्द्रिका चोरी से तक,
क्यों कर है कुछ पाना,
जीवन के अगणित भावों को
बस है जीते जाना।
और पिरोना माला जैसे मनका मोती माया!
मन में एक प्रश्न आ कौंधा, जीवन में क्या पाया!!
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कि बाहाँ में अपने सजाया था तुमने।
हाँ पोंछे थे आँसू कभी जिनके उनको
बिना कुछ कहे क्यूँ रुलाया था तुमने।
जो जीवन का सपना दिखाया था तुमने
जिसे खुद से ज्यादा मनाया था तुमने।
जो मासूम तुमको जहाँ मानती थी
उसे क्यूँ जहाँ से डराया था तुमने।
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चन्द्रमा की चन्द्रिका से पूर्णिमा की रात को।
मैं तुम्हें प्रिय भेजती हूँ प्रीत की चूनर रंगीली।।
लोर भर आँजन सरीखा
रात को आँखों में आँजे।
प्रिय तुम्हारे वाम में जस
पार्वती शिव संग राजे।।
तुम सजा दो माँग में सिन्दूर औ मेंहदी हथेली।
मैं तुम्हें प्रिय भेजती हूँ प्रीत की चूनर रंगीली।।
उदित दिनकर लालिमा
बिंदिया को माथे पर सजाये।
कुमुदिनी सम नयन मूँदे
मुदित मन, बाहर लजाये।।
प्रिय तुम्हारे बाँह के बँधन बँधी सुन्दर छबीली।
मैं तुम्हें प्रिय भेजती हूँ प्रीत की चूनर रंगीली।।
रेशमी साड़ी सुनहरी
और अलता पाँव में।
सोलहों श्रृंगार करती
और कहती गाँव में।।
मिलेंगे शिव या सजेगी फूल सी अर्थी सजीली।
मैं तुम्हें प्रिय भेजती हूँ प्रीत की चूनर रंगीली।।
प्रिय प्रतीक्षा में तुम्हारी
प्राण तन जस धारती है।
स्वयं पर उपकार अथवा
मृत्यु को पुचकारती है।।
तारकों से टिमटिमाती भेज दो नववधू डोली।
मैं तुम्हें प्रिय भेजती हूँ प्रीत की चूनर रंगीली।।
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हमें तुमसे मोहब्ब़त हो गई है
या दुनिया से ख़िलाफ़त हो गई है,
ये दिल सुनता नहीं अपनी बताओ क्या करें
हमारी हम से ही देखो बगावत हो गई है!!
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बिखर जायेंगे जिसकी इक छुअन से,
तुम्हार प्यार है, पतझड़ है या पत्थर है कोई!!
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उसने सिर्फ इतना कहा "तुमने कहने में देर कर दी!"
मैं आज भी सोचती हूँ, प्रेम कहने की बात है भला!!
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कल किताबों के मेले में पाश का एक पोस्टकार्ड दिखा
जिसकी पंक्तियाँ और उनकी सजावट
बरबस अपनी ओर खींचे जा रही थीं,
जब हमने उसे माँगा तो पता चला
किसी और ने पहले से चुन लिया है उसे!
ये संयोग है या नियति पर जाने क्यों
जिस पर मेरा दिल ठहर जाता है
उसे पहले से ही किसी ने चुन लिया होता है!!!
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नई किताबों की खुशबू
सिगरेट की तरह होती है,
एक बार भीतर उतर गई
तो आपको अपना आदी बना देती है!!
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