वक्त गर न हुआ है तुम्हारा तो क्या,
कोई दर न हुआ है तुम्हारा तो क्या,
अपने उर में बसा लो जहान इक नया,
ये शहर न हुआ है तुम्हारा तो क्या.....!-
“रंगों की तासीर में बिखरे से हैं हम , बस खुद को मुकम्मल करने में बिखरे से हैं हम !! ”
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“या तो हमें मुकम्मल चालाकियां सिखाई जाएं,
या फिर मासूमों की अलग बस्तियां बसाई जाएं" !!
अज्ञात !-
ख़याल जिसका था , ख़याल में मिला मुझे ! सवाल का जवाब भी , सवाल में मिला मुझे ! अपने अमल का हिसाब क्या देते ? सारे सवाल गलत थे , जवाब क्या देते !!
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आज कल बाज़ार में ... पैसों की यारी चल रही हैं .....! कुछ दोस्त मिले...... वो भी पैसों की जिम्मेदारी पे चल रहे हैं ....।।
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चिराग कैसे अपनी मजबूरियाँ बयाँ करे, हवा जरुरी भी है....... और डर भी उसी से है..…............!
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“संवारने ” को तो सारा , जहाँ बाकी है ...! “संवरने " को तेरा एक , शब्द ही काफी है ....।
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लफ्ज़ ,अल्फ़ाज , कागज़ , क़िताब सब बेईमानी है...! तुम सामने हो , मैं देखता रहूँ , बस इतनी सी कहानी है ...।
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The conservatism of apathy in art and literature, is the cause of insensitivity towards people suffering from depression.
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ये ज़मी , ये आसमां , ये सबा , यहाँ सब कुछ है !.... तेरे आने के, इल्म में , यहाँ सब खुश हैं!....
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