शिवानन्द   (Sense of Ink)
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Joined 22 October 2018


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मयखानों में खर्च होता दिमागदार।
अपने घर का बना सबसे बड़ा है सरदार।
थका हुआ माथे का समझदार।
भावनाओं के बह जाने पर होता है वफादार।
~~शिवांन्द

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मंजिल-ए-ख्वाब तलक, सागर रहबर हो जाएगा।
साहिल धार लिए तरंगिणी का पयंबर हो जाएगा।
~~शिवानन्द

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महक लिए मौजों में...
उफनती उबलती अपनी पाय।
अदरक इलायची के साथ...
घुलती अपनी शिरीन की हाय।

अपने प्याले,अपनी चाय।
संबंधों के संवादों में...
अपनी चुस्कीयों की राय।
~~शिवानन्द

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इश्क-ए-अमानत में स्पर्श सब लिहाज पी गया।
उठा श्रृंगार का सरोवर तो अलिंगन पी गया।

मन मीत हुआ तो वह पांवों को छू गया।
आंखों की झपकियों से रूह को चूर गया।
~~शिवानन्द

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रात के पनघट पठारों पे।
करवट जश्न मनाती रही,
स्वप्न लिए पतवारों पे।

नींदे घुलती हुईं चांद सितारों पे।
आंखें मजलिस करती है हजारों पे।

उम्मीदों की तहजीब, पलकों के सीगारो पे।
फिर भास्कर दिन ले आया, तिमिर के दिवारो पे।
~~शिवानन्द

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पैसों का रूतबा बहुत ही बड़ा है।
इंसान भी छोटा वह इतना बड़ा है।

संबंधों को सम्हाले वह तन के खड़ा है।
दुनिया को आंखें दिखाते, चिढ़ाते पड़ा है।

काली बोतल में पानी भरा है।
खर्चे का पानी उसमें भरा है।

किसी की रोटी पर चांदी चढ़ा है।
लेखा का जोखा तराजू मढ़ा है।

खाली गुल्लक में एक मौन का हहकार मचा है।
टीमटाम की जेब पर विरासत का रास रचा है।
~~शिवानन्द

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जब लोग अपने..
कलेजे,दिल और उम्मीद सरहदों को देते हैं।
संजोते हुए जीवन को इस मिट्टी में भिगोते है।

तब हमारा वाह उनके आहों को लगता है।
पलकों के आंसू बीन रोएं देह पर चलता है।

घरों का मातम घर तक ही रह जाती है।
एकत्रित भिड़ एक वक्त बाद कहा ठहर पाती है।

युद्ध एक पर्व नहीं है।
यह पटाखों का घर नहीं है।
देहावसान, जिन्हें जश्न लग रहा हो
शायद सरहदों पर उनका घर नहीं है!
शहादत नमन 🇮🇳
~~शिवानन्द

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जो जिम्मे की दारी समझ रहे है वे जिद्दी नहीं होते हैं।
स्वप्न और शौक बेटोर लेने वाले, जीवन में सीधे नहीं होते हैं।

जो हर चीज में खुद को उड़ाते हैं वे हमेशा परिंदे नहीं होते हैं।
वक्त के उभारो पर उजाला करते हुए हमेशा कलिंदे नहीं होते हैं।
~~शिवानन्द

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ये दुनिया...
किस काम की।
बिन हिस्से बेनाम की।

चतुर, चालाक, चंचल
बस अपने कमान की।
पीर पराया हो...
सुख, अपने सम्मान की।

व्यथा, प्रथा और कथा
चले लहज़ा मेहमान की।
मृदुल मृदंग हो अपना...
करकस, दुसरो की अमान की।

ये दुनिया...
किस काम की।
बिन हिस्से बेनाम की।
~~शिवानन्द

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दुसरो के दुनिया में झाकती दुनिया।
खुद के किस्सों को बांधती दुनिया।

अपने हिस्से हिस्से का राग गाती दुनिया।
सुलग कर अपनी राख को जलाती दुनिया।
~~शिवानन्द

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