परत दर परत चेहरे रखने वालों की शिनाख्त किजिए।
वक्त में हम-दम बसर कर सके ऐसों से रिफाकत किजिए।
~~शिवानन्द-
अधिकतर दुनिया खुद के लिए गोल होती है।
अपनत्व के आडंबर में सुमधुर ढोल होती हैं।
~~शिवानन्द-
दरख़्तों कि सिलवटें अपने जमाने बयान करती है।
एक उम्र का रहगुजर अपनी तजुर्बा सयान करती है।
~~शिवानन्द-
वक्त के साथ...
रफीकों के काफिले दूर हुए।
जिंद में उड़ते हुए...
मिजाज ए रौब वाले दाखिले दूर हुए।
हिज़्र को साथ बांटने वाले...
आकाश में मुनव्वर के सफीने दूर हुए।
जिंदगी की रियासत में...
सुदामा~कृष्ण के कबीले दूर हुए।
~~शिवानन्द-
जो एक दौर तक
घर से आगे नहीं गए।
वह एक दौर के बाद
इस दुनिया में स्वीकारे नहीं गए।
कुछ राख लिए सिमट गए।
कुछ धुएं के रूआब में
आसमां से लिपट गए।
दुनिया के रंगबाजी में
जो रंगों के रंगसाज हुए।
चलते चलते उम्मीदों की
रीढ़ के बादशाह हुए।
~~शिवानन्द-
खुद की ऐब कश्तियां है
श्रृंग गर्त की मस्तियां है।
लहरों के थपेड़ो पर
जीवन की प्रवाह बस्तियां हैं।
साहिल में लिपटी हुई
धरा की बड़ी बड़ी हस्तियां हैं।
~~शिवानन्द-
तरंगिणी के मेघपुष्प को छुती हुई हवाएं।
अपने अनातय से लेती क़ल्ब की बलाएं।
साहिल पर श्रृंगार का धरोहर लिए मचलता जलबिंब।
कल-कल की आवाजों में शांत बैठा चांद का प्रतिबिम्ब।
~~शिवानन्द-
झुर्रियों में सना हुआ जिंदगी का फलसफा है।
कांपते हाथो में स्पर्श के शुकून का भरा सफा है।
न जाने कितने पड़ाव सोख गई माथे की रेखांकित मिनार।
सिलवटें बन गई फिर भी आंखों में उमड़ता है दुलार का चुनार।
~~शिवानन्द-
मौन से रू-ब-रू होता मेरा दिगम्बर यहां।
सर आंखों पर चढ़ा रखा अम्बर यहां।
बड़ी पतझडो़ के लिपटने के बाद बसंत आया है।
नुतन बहारों में अंकुरित नवजीवन सी काया है।
~~शिवानन्द-
एक समझदार को भी...
एक समझ की जरूरत होती है...
कि उसके द्वारा क्या समझा जा रहा है।
~~शिवानन्द-