इन कोरे से पन्नो में ही बस समेट पायें हैं तुमको
लकीरों की लाचारी से बदहाल बहुत हुए हैं हम
पाकर दौलतें सारी क़ायनात की हथेली पर
तेरी चोखट पर तुझे ही मांगते हुए कंगाल हुए हैं हम।
कभी जो थे तेरे आंगन की सुबह की चहचाहट
वक़्त की बेरुखी से तेरे जी का जंजाल हुए हैं हम।
स्याही में ही समेट लिए है अब तमाम जज़्बात हमने
एक बस जिसे तू ही नही पढ़ सका वो उलझा सवाल हुए हैं हम-
ये पहाड़ों का रौद्र विरह
जो बहता चलता है
नदियों की गहराइयों के साथ
और जा मिलता है समुद्र के ह्रदय को ..
खरा अपूर्ण प्रेम बनकर झलकता है फिर
प्रत्येक लहर के उभार में
और कौंध कर अंतर्मन तक...
धूमिल हो जाता है
हर ज्वार की सांस की आख़री सांस में
वही अपूर्णता बस निहित रह गयी है
दरमियां मेरे और उसके
जो कच्ची डोर सी मजबूती लिए बांध ही देती है
हमे नित नयननीर की कोमलता से..💔-
तमाम कर रहे है जद्दोजहद, तमाम ख़ुद को करके
तेरे नवाज़े हर ग़म का जर्रा जर्रा पीना सीख रहे हैं।
तलाश कर रहे हैं हर नज़र में बेनज़ीर तुझको कहीं
अपने जख्मों को बेगानी खुशी के धागों से सीना सीख रहे हैं।
तराश रहें हैं ख़ुद को पत्थर की सी रूह के हूबहू
मर कर ही सही रफ्ता रफ्ता अब जीना सीख रहे हैं।😊
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मेरी लिखावट के हर हर्फ़ से झलकता है तासीर-ए-इश्क़
ओर जनाब हैं कि यूँही हर पन्ने को ख़ामख़ा पलटते जा रहे हैं..💔-
कमाल की बंदिशें हैं, कमाल के मंजर हैं
एक तरफ है इश्क़ उसका ओर एक तरफ ज़हरीले ख़ंजर हैं।
बमुश्किल सम्भलते हैं जज़्बात उसकी निगाह-ए-गुस्ताख़ से
रौनकें घिर आती हैं हर तरफ उसके एक मामूली से ख़्याल से..
अदब मानो दिल हार जाता है कहीं वीराने में
रूह हारी जाती हैं उसकी आँखों के मयखाने में
फिर होश को तलाश करनी होती है मंज़िल अकेले
इश्क़ नही है मात्र ..उसकी यादों से लिपटे हैं मेरे अनगिनत झमेलें...
शब्द मिलते नही के लिखूं मैं आवाज़ मेरी रूह की..
बस महबूब हो गयी हूं उसकी रूहानी सी ख़ुश्बू की.... ❤
~शिवानी सैनी
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तेरी यादों के बवंडर में हर रोज़ खुद को खो दिया करते हैं।
एक कतरा सुकूँ के लिए, अक्सर हम टूटकर रो दिया करते हैं।
पिरोये जाते हैं फिर टूटे मनके मेरी चाहतों के
अक्सर ख़्वाहिशों को अब गीले तकिये पर बो ही दिया करते हैं।
💔💔😔-
ये जो हम ख़ोजते हैं तुम्हे
कहीं दूर आसमां में बिखरे
हर एक तारे की रोशनी में..
कभी तुमने भी क्या जुगनुओं से
हमारा पता पूछा था..?
वो जो बारिशों की फ़ुहार में
छिपाए थे भीगे सारे शिकवे हमने
क्या तुमको भी कभी कुछ
ऐसा पागलपन सूझा था...?
हर सांस के साथ जो नाम तेरा
गुनगुना जाते हैं हर दफ़ा हम..
क्या तुम्हारा ज़ेहन भी तलाशता है
हूबहू वैसे ही हमको या फिर
गिरफ़्त में कोई ओर दूजा था...?
💔 ~शिवानी सैनी
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सर्द सुबह और पेड़ों की पत्तियों से
झांकते सूरज के कुछ कण
तुम्हे सुकून देते होंगे ....
मग़र वहीं किसी कोमल सी पत्ती की गोद मे
छिपी एक नाज़ुक सहमी सी ओस की बूंद की
जिंदगी का वो आखरी लम्हा होता है।..
बस वही ओस की बूंद सी हो जाती हूँ मैं भी
जब कोई किरण मंडराती है तेरे मन के चहुँ ओर
ओर अचानक से कोंध उठते हैं मेरे अहसास सारे
बेबस होती हूँ मैं उस पहर की कहीं
तुमको भा गयी उसकी तराशती सी खूबसूरती
तो कहीं मैं जिंदा रह पाऊंगी क्या ..
या मर भी पाऊंगी क्या
किसी ओर के हाथ तुझे खुश देखकर..
❤❤. ~शिवानी सैनी-
रह गयी खामियां के हम तुझे वो सब कह ही नही पाए
जो अक्सर एकांत में तेरी तस्वीरों से बयां कर जाते थे।
कभी मुस्कुराते, कभी शरमाते, कभी एकटक देखते तेरी आँखों को
फिर सहसा मेरी पलको पर ओस सी नमी लिए अश्क़ ठहर जाते थे। ❤
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शिकायत शिकवों को साहिब, इतनी कहां तमीज़ होती है
वो जो भूल गया बेवजह, ये बस उसकी ही आजिज़ होती हैं..😔-