शिवांगी शर्मा   (Khaabparinda)
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Joined 14 June 2017


Joined 14 June 2017

तुझे लड़ना पड़ेगा
तुझे टूटना पड़ेगा
टूटते हुए बिखरना पड़ेगा
क्योंकि जब तू बिखरेगी
तभी तू बनेगी
और इस बार बेहतर बनेगी।

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ऐ खुशियों के दामन को न छोड़ने वालों
ज़रा समझा हमें दो,तुमने पाया क्या है
ये जो खुशियों की आस में ख़ुद को तबाह किया है
पता है दुखों के बाद सुख का स्वाद क्या है?

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मैं जब कभी तुम्हें गुलाब दूँ,
तुम उसे अपने पास मत रखना
हाँ, मेरा दिल रखने के लिए,
मेरे हाथों से ले लेना
पर मुरझाने से पहले ही उसे फेंक देना।
पता है?
सूखे हुए फूलों को फेंकना ज़्यादा मुश्किल होता है।

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‘ख़्वाबपरिंदे’

बिन पंख खोले उड़ने को कहते हैं
ये दुनिया वाले हद में रहने की सलाह देते हैं
जानते नहीं लोग परिंदो की हदें नहीं होती
देर होती है तो बस पंखों के खुलने की
फिर धरती बहुत कम है,आसमान से भी पूर्ति नहीं होती
खुलते ही पंख, पखेरू के,वह मनमौजी हो जाते हैं
घूम के यह दुनिया सारी नए जहां को खोज लाते हैं
पर आँखों में जब उनकी यह लोग सपने पढ़ जाते हैं
काट 'पर' दूर दफनाने की कई तरक़ीब लगाते हैं
अक्सर दुनियावाले परिंदो को बाँधने में सफल हो जाते हैं
बैठ समाज में फिर अपनी सफलता का बिगुल बजाते हैं
मन ही मन ये अपनी झूठी कामयाबी पर मुस्कुरातें हैं
एक और ख़्वाबपरिंदे को मार ये जीत का जश्न मनाते हैं
भूल जाते हैं परिंदो की फितरत होती है उड़ान
कैद भी कर लेंगे पिंजरे में तो होगी ख्यालों की उड़ान।

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जब तक मुझे बुरा लगेगा,उसको सुकून की नींद आएगी
जिस दिन मुझे बुरा लगना बंद हो जाएगा,उसकी नींद उड़ जाएगी

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हर समय नशें में रहता हूं, न पता दिन है रात है क्या?
वो जब आए मदहोश करता है, सच में शराब है क्या?

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जब-जब कलम की स्याही ख़त्म होती है
तब-तब यादों भरा इक पंछी आज़ाद होता है

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मेरे किसी ख़त का जवाब भेजता नहीं
पढ़ता सब कुछ है मगर कुछ कहता नहीं
तू टीचर है ज़रा टीचर सा व्यवहार तो कर
मेरी लिखाई पर क्यूं अंक देता नहीं।

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सुबह का आगाज़ अभी नहीं हुआ जो उसका आना नहीं हुआ
वो जब आएगा हवा कुछ ठंडी हो जाएगी,सुबह बीती रात का हर गिला भूल जाएगी

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ना हकीम,ना वैद्य,ना दवा चाहिए
तू संग हो तो, ना मुझे दुआ चाहिए
जो करके किनारे मुझे छोड़ दे
तू फिर चाहिए, तू ही चाहिए

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