‘ख़्वाबपरिंदे’
बिन पंख खोले उड़ने को कहते हैं
ये दुनिया वाले हद में रहने की सलाह देते हैं
जानते नहीं लोग परिंदो की हदें नहीं होती
देर होती है तो बस पंखों के खुलने की
फिर धरती बहुत कम है,आसमान से भी पूर्ति नहीं होती
खुलते ही पंख, पखेरू के,वह मनमौजी हो जाते हैं
घूम के यह दुनिया सारी नए जहां को खोज लाते हैं
पर आँखों में जब उनकी यह लोग सपने पढ़ जाते हैं
काट 'पर' दूर दफनाने की कई तरक़ीब लगाते हैं
अक्सर दुनियावाले परिंदो को बाँधने में सफल हो जाते हैं
बैठ समाज में फिर अपनी सफलता का बिगुल बजाते हैं
मन ही मन ये अपनी झूठी कामयाबी पर मुस्कुरातें हैं
एक और ख़्वाबपरिंदे को मार ये जीत का जश्न मनाते हैं
भूल जाते हैं परिंदो की फितरत होती है उड़ान
कैद भी कर लेंगे पिंजरे में तो होगी ख्यालों की उड़ान।
-