तुम मुझसे प्यार करते हो?
नहीं,
क्या बोले?
नहीं,नहीं, नहीं, नहीं, नहीं करता
उसने झूठ कहा कि उसे मुझसे प्यार नहीं है
उसने झूठ कहा कि उसे मेरी याद नहीं आती,
वो झूठ बोलता है कि वो रात को मेरी तस्वीर नहीं देखता,
वो झूठ बोलता है कि मेरे बिना वो ठीक है,
सच यही है कि वो मुझसे प्यार करता है,
वो मुझसे बहुत प्यार करता है।
_@shivanshayar-
मैं अब मैं नहीं तुम होना चाहती हूँ,
बुझदिल, बेदर्दी, बद्दतमीज़ बनना चाहती हूँ,
मैं चाहती हूँ तुम्हें खून के आँसू रुलाना,
हर नदी को मैं खारा समंदर बनाना चाहती हूँ,
हाँ, कुछ ऐसी हीं मैं, मैं नहीं तुम होना चाहती हूँ,
मेरी चाहत है तुम तड़पो और मैं चैन से सोऊँ,
तुम मरो मेरी खातिर और मैं तुम्हें मरता हुआ छोड़ जाऊँ,
मुझे मालूम हो की तुम्हारी हालत ठीक नहीं है,
और मैं तुम्हारी बदहाली में तुम्हें और बेहाल कर जाऊँ
हाँ, हाँ, कुछ ऐसी हीं मैं, मैं नहीं तुम होना चाहती हूँ।
न जाने क्यों मैं अब मैं नहीं तुम होना चाहती हूँ,
शायद खो दिया है मैंने खुद को तुममें
इसलिए अब मैं, मैं नहीं तुम होना चाहती हूँ।
_@shivanshayar
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मन हार चुका है,
मस्तिष्क शून्य हो चुका है,
मृत्यु अपनी लगने लगी है
और......
और
मृत्यु उस पार खड़ी है,
पर उस पार जाए कौन?
आख़िर जीवन भला किसको नहीं प्यारा होता!
_@shivanshayar
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मेरी दुआ है कि तुम्हें मेरी ये दुआ लगे,
तुम्हें भी हो किसी बुझदिल से मोहब्बत
फिर तुम्हें उसकी आदत लग जाए,
वो न दिखे तो चैन न आए तुमको,
एक रोज़ बात न हो तो तुम्हें मौत याद आ जाए,
फिर कुछ ऐसा हो कि हर बात पर वो तुम्हें
तुम्हारी हीं नज़रों में गिराए
तुम रोओ तो तुम्हें रोता हुआ छोड़ जाए,
भीख सा मांगो तुम उससे अपनी हीं मोहब्बत,
और वो तुम्हें हर बार कि तरह नज़र अंदाज़ कर जाए,
जब तड़प हो तुम्हारे अंदर एक झलक की उसकी
वो लाख वादा कर तुमसे, तुम्हारे सामने हीं मुकर जाए
हो तुम्हें जब सबसे ज्यादा जरूरत उसकी,
वो तुम्हें सूखे पत्ते सा कुचल जाए,
फिर भी जी चाहे उससे बात करने की तुम्हें,
खुदा करे वो तुमको हर बार तड़पता हुआ छोड़ जाए,
मेरी दुआ है तुम्हें मेरी ये दुआ लगे,
हो तुम्हें भी किसी ऐसे से मोहब्बत,
जो तुम्हें तुमसा हीं लगे ।
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अल्पना:- उसे मुझसे प्यार था या क्या था!!!
परिज़ाद:- उसे तुमसे मोह था। वरना, यूँ रात को तुम्हें वो रोता हुआ छोड़ के न जाता हर बार, तुम्हें उससे मिलने के लिए यूँ तड़पना नहीं पड़ता, तुम्हें रात को panic Attacks नहीं आते, तुम हर वक्त हर घड़ी आज मरने का नहीं सोंचती!! तुम चुलबुली सी हँसमुख लड़की थी आज इतनी खामोश,बेसुध सा नहीं रहती।
अल्पना:- फ़िर!!! फ़िर क्या मैं मर जाऊँ! अगर वो मेरे बिना खुश है तो क्यूँ ना उसे ताउम्र की खुशियाँ दूँ खुद को ख़तम कर के।
परिज़ाद:- क्या सचमुच तुम्हें लगता है तुम्हारे ना रहने से उसे कोई अफ़सोस होगा? तुम्हें खो देने का उसे मलाल रहेगा?
अल्पना:- शायद ... या शायद नहीं
परिज़ाद:- फिर?
अल्पना:- फिर.......
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तुम अपने थे तुम्हें मेरी मौत मजाक लगती थी,
मैं बेगानों से कहता था मुझे मरना है आखिर मुझे उनसे क्या पड़ी थी!-
हर रोज़ मरने से अच्छा था एक रोज़ को मर जाते,
एक रोज़ मर जाते तो यूँ हर रोज़ मरना नहीं पड़ता।
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हम मिलेंगे एक रोज नदी के उस पार
मेरी अस्थियाँ रेत में तुम्हारा इंतज़ार करेंगी,
तुम आना एक रोज करीब मेरे
मैं धूल सा तुमसे लिपट जाऊँगी।
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मेरा कातिल कोई और नही बल्कि मेरा हीं इश्क़ होगा,
और अगर वो साथ होता मेरे तो फिर मुझे मरना हीं क्यूँ होता।
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बेमौत एक दिन मैं मर जाऊँगी,
और लोगों को मेरी मौत एक हादसा लगेगी।
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