ज़िन्दगी के रंगमंच पर किरदार कुछ ऐसा है
कि लोग जाते गए तेरे जाने के बाद...
और बशरत-स-मुतालिक है संजीदा, वर्ना
तमाशे होते हैं तेरे मुस्कुराने के बाद....-
ये जो बूंद अटकी है ना फूल से
बस ऐसे ही मेरा दिल अटका है तुम्हारे दुपट्टे से...-
ना हौंसले, ना इरादे बदल रहे हैं लोग।
थके थके से हैं, फिर भी चल रहे हैं लोग।-
अपना सफ़ीना कुछ यूं डुबोया मैंने... उसको पाकर खुद से खुद को खोया मैंने...
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शहर-ए-मोहब्बत की अजीब रवायत है..ज़नाब...
सालों भटकना पड़ता है इक लम्हा सुकून पाने को...-
दौर-ए-इश्क़ का चर्चा था शहर में।
अब तेरी फ़ितरत में तल्फ़ियत का चर्चा है।-
ख़ामोश सी ज़िन्दगी में ख्वाबों की ख़िलाफ़त। खंज़र सी ख़लिश, ख्वामख्वाह की इबादत।
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Looking down to the pale tinted Train window..Trees going past for the evening tea..And I'm with the best read of the year in the last month of the calender...Watch says it's 5:48. Craving for tea..I think of you..Train gets faster..So your thoughts..I'm emblazed ...
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ना मिल रहे हो मुझे न खो रहे हो तुम।
दिन-ब-दिन दिलचस्प हो रहे हो तुम।-