Shiv Poojan Pathak   (शिव 'बयार')
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Joined 31 May 2017


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Joined 31 May 2017
8 MAR 2023 AT 9:04

कान्हा की मुरली,राधा की पुकार,
दुनियाभर में बिखरे ब्रज सा प्यार,
अमन,चैन, सुख और शांति बरसे,
खुशियों से महके रंगों का त्यौहार।

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6 MAR 2023 AT 14:23

इक तेरा दिल है जो नही समझता,
पत्थर भी मोहब्बत नही समझता।

जब चाहे आना मगर तुम्ही आना,
दिल किसी और कि आहट नही समझता।

जी चाहता है मेरा कि और कुछ कहूँ,
ज़माना मगर तुम से गैर नग़मा नही समझता।

तुम्हारी चाहत का अक्स है भी कुछ ऐसा,
कुदरत भी तुमसे इतर इश्क़ नही समझता।

बहार के रंगों में घुला मिलेगा मेरा इश्क़,
मेरा फूल ही मुझको भंवरा नही समझता।

बदल गयी है मेरे मन की भी आदत,
तुम्हारे सिवा और को सपना नही समझता।

कहना तुम्ही मग़र दबी जुबां से कहना,
प्यार का लहज़ा हर कोई नही समझता।

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27 SEP 2022 AT 22:08

राह-ए-ज़िन्दगी में गुज़र गए वो पड़ाव,
ना धूप की फिक्र थी ना ढूंढते थे छांव ,
मुट्ठी में समायी रहती थी दुनिया सारी,
हौसले थे आसमां में और जमीं पे पाँव।

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21 SEP 2022 AT 11:58

हंसी का जहां 'बयार' बेसहारा हो गया,
जमीं का सितारा आसमां का तारा हो गया।

#RIP_Raju_Shrivastava

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19 SEP 2022 AT 20:30

हर इक दरिया को अक्सर समंदर नही मिलता,
इन आँखों को खूबसूरत कोई मंजर नही मिलता,
छुपा बैठा है जो इक कातिल मेरे सीने में,
देता है ज़ख्म मगर हाथों में खंजर नही मिलता।

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4 AUG 2022 AT 17:50

तुझे हम इस क़दर चाहने लगे हैं,
कि ज़माने के नज़र में आने लगें हैं,

गुज़रते हैं जब भी तेरी गलियों से,
देखकर लोग हमें मुस्कराने लगें हैं,

तेरी आहट भी नही मिलती जबकि,
बज़्म-ए-दिल को हम सजाने लगे हैं,

जर्रा-जर्रा है अब जो दीवाना तेरा,
क्या हुआ जो हम भी गुनगुनाने लगे हैं,

ये बात और है कि वक्त का पाबंद है,
अब तो हर पहर हमको सताने लगे हैं,

इतना सुना रखा है लोगों ने तेरे बारे में,
कि हम कुछ और कहें तो फ़साने लगे हैं।

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13 JUL 2022 AT 12:53

हर किसी के कुछ अफ़साने हैं ,
यहां हर कोई हम'से दीवाने हैं,

शमा तो बुझ गयी कब कि,
मगर फिरते लाखों परवाने हैं,

अभी तो गुजर रहा था बसंत,
अब तो बस पतझड़ छाने हैं,

कुबूल हैं सब तोहफ़े शौक से,
अभी तो बहुत शिक़वे पाने हैं,

मिलते थे कई जब थे होश में,
बेहोशी में सिर्फ तुमको जाने हैं,

लो आ गए तुमसे दूर बिछड़,
यहां हम खुद से भी बेगाने हैं,

छोड़ो 'बयार' सारे वादे वफ़ा के,
अभी तो किस्से जफ़ा के आने हैं।

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2 JUL 2022 AT 14:24

सत्ता की आड़ में यह खेल खेला जा रहा है,
हर कहीं किसी से छीना निवाला जा रहा है।

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1 JUL 2022 AT 21:19

बड़ी चालाकी से आगे निकल गया रहगुज़र,
मैं था कि चलता गया मंज़िल क़रीब मानकर।

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1 JUL 2022 AT 9:32

टूटे हुए आसमां,बिखरी जमीं के बसिंदे हैं,
परों से नहीं हम हौसलों से उड़ते परिंदे हैं।

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