'आपसी क्षोभ'
दायरे में सिमटी मानसिकता
सवाल पर सवाल करती है;
दहलीज के अंदर
और बाहर निकले कदमों पर।
संवाद, विवाद का रूप ले लेता है
असहमति के आधार पर;
परिस्थितियों के वशीभूत मत,
कसौटी पर खरे नहीं उतरते।
ओर छोर से परे निष्कर्ष सब,
विडंबना में ध्वस्त होते हैं।
अंततः तर्क, कुतर्क हो जाता है;
उस पक्ष में,
जिसकी जवाबदेही होती है।
-Shiv@noor
-
उम्रभर,
किसी दूसरे को दोष देने से बेहतर है कि
एक सबक की जिम्मेदारी खुद ले लो।
-शिवानूर-
पत्ता हल्का होता है,
तना लम्बा
और जड़ गहरी।
जब जीवन पीला होकर सूख जाता है;
हल्कापन गिरता है,
लम्बाई टूटती है,
अब सिर्फ गहराई रहती है।।-
अब भी
मुझमें,
आधा निकला;
मेरे हिस्से का।
बाकी का जो मेरा,
कुछ तो लेखा-जोखा होगा
तेरे किस्से का।।-
कभी घटता कभी बढ़ता
वो हर रोज पिघलता,
कभी आधा दूर कभी पूरा पास चमकता,
कभी दिन में भी दिखता तो..
कभी काली रात में छिपता
वो हर रोज निकलता,
लिए चांदनी ठंडा-सा
'जलता चाँद'
-
'मौन से'
मौन से, तोड़ दूं दुनिया के तर्क सारे
मन में पले दुविधा के द्वन्द्व सारे
उलझनों के मुक्त हों बंध सारे
झंझटों में लिप्त बेजार संबंध सारे
खुदी से संघर्षरत अगणित स्वप्न सारे
विचलित टूटती धड़कने और चंद सांसे,
बिखरा हुआ अपनापन उस पर हांफतीं आशाएं
शायद फिर...
जिंदगी ढूंढ लेगी एक धुन,
स्वीकृति से जुड़े आयाम सारे।
-शिवानूर-
Ab Kya Huaa.?
Tum Toh Meri Nazarein Hi Pd Kr Mere Dil Ka Haal Jan Liya Krte The Na..!🥀-