Shiv Lilhare  
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Joined 23 October 2017


Joined 23 October 2017
12 DEC 2021 AT 23:26

"आशा के विपरीत कोई घटना का होना ही भाग्य (प्रारब्ध) है।"

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29 NOV 2021 AT 18:53

समय हर प्रश्न का सही और सटीक उत्तर देता है।
समय ही बताएगा
अतः मुश्किल समय हो तो समय पर छोड़कर चिंतामुक्त रहा जा सकता है।

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24 AUG 2020 AT 2:56

एक सत्य है- कर्म फल कर्मो के अनुरूप होता है।
दूसरा सत्य- फल पर कर्ता का अधिकार नहीं है। अर्थात केवल कर्म पर अधिकार है।
तीसरा सत्य- हर सत्कर्म का फल अच्छा ही मिलेगा यह केवल भ्रम है। कई बार दूसरों के बुरे कर्मों का फल भी अनायास ही मिलता है, जिनसे हम भाग नहीं सकते।
प्रश्न उठता है- क्या यह फल का भोग करना आवश्यक है?

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8 DEC 2019 AT 17:45

*ज्ञान ऐसा अमृत है जिसे प्राप्त कर व्यक्ति भय से मुक्त हो सकता है।*
भय मुक्त अर्थात पाप पुण्य से मुक्त।

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8 DEC 2019 AT 16:42

🎯
*गीता दर्शन*
यदि कर्म निष्काम है, तो पाप और पुण्य नहीं होता।
पाप और पुण्य नहीं होता तो उसका परिणाम कैसा।
फल तो उसके लिए है जो सकाम कर्म करता है।

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8 DEC 2019 AT 16:37

🎯
*गीता दर्शन*
यदि कर्म निष्काम है, तो पाप और पुण्य नहीं होता।
पाप और पुण्य नहीं होता तो उसका परिणाम कैसा।
फल तो उसके लिए है जो सकाम कर्म करता है।

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4 DEC 2019 AT 14:53

भारतीय संस्कृति में सतसंग का बहुत सुंदर चिंतन आता है। सतसंग देवत्व की ओर अग्रसर करने वाला प्रथम चरण है।
सत्संग का सीधा सा अर्थ है- अच्छी संगत यानि अच्छे विचार शील उच्च नैतिक मूल्यों को जीवन में लागू करने वाले व्यक्ति की संगत।।
इसके उलट कुसंगत है। कुसंगती भारतीय संस्कृति में अच्छी नहीं मानी गई हैं। कुसंगत का असर व्यक्ति पर तेजी से होता है।
कुसंगती पतन के मार्ग में निश्चित ही बहुत आगे ले जाती हैं। कुसंगत का फल भी मिलता है। जैसा कर्म वैसा ही फल।।

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2 OCT 2019 AT 18:22

मौसम में आने वाले अनचाहे बदलावों को
अब हम सभी महसूस कर रहे हैं।
विज्ञान ने बहुत पहले ही ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव
और उससे होने वाले वैश्विक समस्याओं के विषय
में चेताया था।
किन्तु आधुनिकीकरण और विकास कहां मानता है,
वह निरंतर प्रक्रिया है।
आओ इस गांधी जयंती देश के साथ हम भी पॉलीथिन
मुक्त होने की तरफ बढ़े।। अपना योगदान भी देने का
विचार करें।
स्वयं बदलने का प्रयास करें।

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26 SEP 2019 AT 22:35

जिसे हम चाहते हैं उसे पाने के लिए,
तन मन लगा कर प्रयास करते है हम,
और वही हम पाते हैं।
*वह चाहे सुख हो या फिर दुख*
*सफलता हो या असफलता*
पसंद हमारी ही होती हैं।
वही मिलता भी है।।

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11 SEP 2019 AT 20:22

वर्तमान के कर्म,
अतीत के बहीखाते में जुड़ते जाते हैं
और
भविष्य में फल के रूप में सामने आते हैं।।
फल को सहर्ष स्वीकार करो या न करो
किन्तु जब कर्म हमारा अपना है
तो फल भी हमारा ही है
और हम स्वीकार करें या न करें
मिलेगा भी अवश्य ही।।
जय श्री कृष्णा

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