शिव कुमार पाल   (Uljhe_ehsaas)
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Joined 28 July 2019


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जिम्मेदारियों का उतारकर बस्ता तेरे दर आयेंगे,
हम अपने घर से निकलेंगें भटकने के लिए
तो सबसे पहले तेरे शहर आयेंगें।।

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तुम्हारी आंखों के कोनों से झरने बने हैं
पलकों के झपकने से कमल खिला करते हैं,
मुस्कुराहट से घाटियों में बाहर आती है
तुम्हारी झुल्फों के खुलने से काली घटा छाती है
तुम जो हंसती हो तो सेहराओं में बहार आती है,
तुम्हारे झुमकों के खनकने से
नदियों में संगीत बजता है,
ये जो माथे पे बिंदी है तुम्हारे
मानों अमावस की रात चांद निहारे,
तुम जो रूठती हो तो बादल गरजते हैं
तुम्हारे रोने भर से ही
आसमां में मेघ फूट पड़ते हैं।।

– तुम्हारा दोस्त

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बस तुम इतना सा साथ निभा जाना,
बैराज से शुरू ये इश्क़ के सफ़र को
तुम भैरो घाट तक ले जाना।।

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इस कमरे की मायूसी में
रात की इस खामोशी में,
एक तस्वीर जेहन में आती है
क्यों तेरी याद दिलाती है..

ये बिस्तर भी तो मेरा है
ये रातें भी तो मेरी हैं,
ये ख्याल भी तो मेरे
फिर तू क्यूं मुझको घेरे हैं...

अब ये झूठे ख्वाब हटा दे
आंखों को नींदे लौटा दे,
मुझसे अब ना जागा जाता है
ये सन्नाटा अब डरावना नजर आता है।।

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मैं मुझमें भी तुम को ढूंढता रहा
मुझे मैं ना मिला सिर्फ तुम ही मिली,
तुम्हें तुम ही मिली कहीं मैं ना मिला
तुम चली ही गई तो मैं समझा यही,
मुझे मैं ना मिला ना तुम ही मिली..

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तुझे तो सब इश्क़ का दरिया मानते हैं
हम तो बस तुझसे इक कतरा मांगते हैं,
तुझे हक़ है पराया कर दे तू मुझको
हम तो इश्क़ में हारे हुए लोग हैं
हम सभी को अपना मानते हैं।।

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जिंदगियां पड़ी हैं बीमार
अस्पताल के उस बिस्तर पे,
जाने किस दरवाज़े से
मौत के आने का इंतज़ार भर है।।

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हमको हैं कुछ ऐसे भी गिले,
कभी वक्त रहते वक्त ना मिला
कभी वक्त पे तुम ना मिले।।

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Tum sath nahi ho
To Chand bhi nahi hai
Maano kisi beghar ke sar
Pe aasman bhi nahi hai..

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इक बस तुमसे ही तो बात नहीं होती
मुझे तो ऐसा महसूस होता है,
जैसे मेरे शहर में अब रात ही नहीं होती।।

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