कुछ वक़्त गुज़रा है,
कुछ और गुज़र जाएगा।
गाड़ी रुकी है, रुकी रहेगी,
तुम्हें साथ लेकर जाएगी,
या यही दफ़्न हो जाएगी।-
ख़ुद को इल्ज़ाम लगा कर कब तक जियूँ,
थोड़ा ही सही मगर क़सूर तुम्हारा भी होगा !!-
जब रहा नहीं जा रहा था सुने ज़ुबानी तेरी,
तब मैंने तेरे लिखे कुछ बातें पढ़ी है…
वो नफ़रत निराशा और तुम्हारा ओछापन,
मुझे ताक़त देता है कुछ दिन और ठहरने को !-
बार-बार ‘गुलज़ार’ इन ज़ख्मों को हरा न करो,
मान लिया की… क़ाबिले-इश्क़ नहीं मैं !!-
अब क्या रह गया है जो मैं साबित करूँ,
चलो ले लो ये जान और मसला ख़त्म करो-
आँखों में तब भी देखा करता था
आँखों में अब भी देखा करता हूँ
तब इश्क़ था अब शक है !!-
आज धूल में पड़ी एक तस्वीर पर नज़र पड़ी,
थे उसमे हमलोग पर वो ‘मैं’ नहीं वो ‘तुम’ नहीं थे !-
कुछ अल्फ़ाज़ को तरस रहे थे
मजलिस हम यारों की,
गर पन्ने जो पलटे मेरी हयात के
महफ़िल मातम में बदल गया ।-
मैं रिसता रहा ताउम्र तेरी बेमनद यादों में,
तुम्हें भी मुस्कुरातें वक़्त मेरा ख़याल आया होगा !-