जनम-जनम की प्रीत है हमारी वाबस्तगी
दिल की गहराइयों से रिश्ते की पाकीज़गी
भुला देती हर ग़म-ज़दा बात को इस क़दर
प्यारभरा एहसास जगाती है तेरी मौजूदगी
ख़याल तुम्हारा ले आता लबों पर ख़ुशी यूँ
दीदार-ए-सनम से मिट जाती है अफ़सुर्दगी
कभी वीरान बयाबाँ था सफ़र-ए-हयात मेरा
गुलज़ार ज़ीस्त हुई जब चाहत की पारिंदगी
फ़रोज़ाँ उजालों जैसे शबनमी है मिलना तेरा
मिलो न गर तुम छा जाती तन्हाई की तीरगी
दर्द भी तुम ही से है करार दिल का धड़कना
बिन कहे समझते इश्क़-ज़ुबाँ है ऐसी उम्दगी
शब-ओ-रोज़ दिल करता यही दुआ 'शीतल'
तेरी सोहबत में हर लम्हा बीते यूँ मेरी ज़िंदगी
शीतल विशाल यादव
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सब वीरान है यहाँ कुछ गुलज़ार नहीं
बे-रौनक फ़िजा मौसम-ए-बहार नहीं
फैला इस क़दर ज़हर आतंकवाद का
अब दुनिया के हालात साज़गार नहीं
हँसते-खेलते कितने ही घर उजड़ गए
कोई भी दरख़्त बचा यूँ सायादार नहीं
आते नहीं जाने वाले कभी भी लौटकर
जीने पर भी अब हमारा इख़्तियार नहीं
दोस्त कौन है दुश्मन पता नहीं 'शीतल'
कि दिल को किसीपर भी ऐतबार नहीं
शीतल विशाल यादव
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अष्टांग मार्गदर्शन कर जीवन में लाएँ सद्कर्म का परिमल
भगवान बुद्ध से सीखा अन्तर्मन से सदैव रहे हम निर्मल
होती है कठिनाई हमेशा सत्य को मगर होता न पराजित
पथपर सत्य के तुम चलते रहना होना नहीं कभी विकल
मन को गहन शांति प्राप्त हो यदि किसी का दुख बाँट ले
वाणी ऐसी हो कि पीड़ाग्नि हर ले तनमन हो जाएँ शीतल
कर्म अच्छे करते रहना यही व्यक्तित्व का होता है दर्पण
अनुचित विचारों को तिलांजली देकर भाव हो निश्छल
संसार में दुख का कारण-निवारण,जन्म-मरण चक्र और
मोहमाया तोड़कर परमात्मापर विश्वास हमेशा रहे अटल
शीतल विशाल यादव
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माँ होती है जन्नत,उसी में दीदार रब का शामिल होता है
वजूद हमारा माँ से ज़िन्दगी का हर पल हासिल होता है
होती है ममता की मूरत माँ के बिना ये संसार अधूरा-सा
बुनियाद है रिश्तों की माँ से ही हर नाता वासिल होता है
करती है हर संस्कार माँ सीखाती हमें सलीका जीने का
पाकर सबक बेहतर बने बशर ऐसे कि ला-ज़िल होता है
करती है ख़ुद से भी पहले फ़िक्र माँ ही अपनी संतान की
थाह नहीं लग पाता यूँ माँ का दुलार दरिया-दिल होता है
ईश्वर की बनाई दुनिया में माँ का ही पुण्य स्थान है सर्वोपरि
औलाद के लिए माँ से माँ तक का सफ़र कामिल होता है
बनेगा बिगड़ा नसीब भी ख़िदमत माँ की कर लो 'शीतल'
माँ की इक दुआ से यूँ हमारा मुक़द्दस मुस्तक़बिल होता है
शीतल विशाल यादव-
ख़ामोशी ओढ़े हुए अनगिनत ज़िंदगानियाँ रहती हैं
बीतती है ताउम्र फिर भी अधूरी कहानियाँ रहती हैं
ठहर जाती है समय की धारा कहीं बेबाक-सी रहती
वक़्त की अहमियत को माने वहीं रवानियाँ रहती हैं
कुछ अच्छे पल फिसल जाते हैं अक्सर रेंत की तरह
बनती जा गुज़िश्ता यादें यूँ बाकी निशानियाँ रहती हैं
करे ज़िंदगी कभी-कभी ग़मगीन ज़ख़्म देकर लेकिन
मरहम लगा ख़याल करती ऐसी मेहरबानियाँ रहती हैं
सफ़र-ए-हयात में जो भी रहता है नेक सीरत 'शीतल'
पा लेता सुकूँ उसकी ज़िंदगी में कामरानियाँ रहती हैं
शीतल विशाल यादव
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जुस्तुजू-ए-मंज़िल में कोशिशों से जीत की चाह है
दिल में राह-ए-जुनून यूँ लक्ष्य पर तीर-ए-निगाह है
गाम-ब-गाम बढ़ते रहना आगे यूँ समंदर-ए-इल्म में
लगता है उथला मगर ख़यालों से परे होता अथाह है
थकना न रुकना हारकर जब ठान लिया हो जीतना
रखना इरादे अपने बुलंद ये वक़्त भी देता सलाह है
भरना उड़ान हौसलों से ऐसे ख़्वाहिशों के आसमाँ में
दिल के नेक अरमाँ को मिल जाती रब की पनाह है
रखना भरोसा भले करम औ यकीं ख़ुद पर 'शीतल'
हर मुश्किल स्याह रात के बाद होती रौशन सबाह है
शीतल विशाल यादव
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वो नहीं आते पर उनकी याद बेक़रार करती है
ग़मगीन आँख़ों से राह देखती इंतज़ार करती है
जाने कहाँ गए वो दिन सुहाने बच गई ख़ामोशी
ख़्वाहिश मिलने की इल्तिज़ा बार-बार करती है
बन गई अब सहारा बीते हुए लम्हों की यादें ही
वरना आज-कल तन्हाई जीना दुश्वार करती है
ख़यालों में भी अधूरी रह जाती दास्ताँ-ए-इश्क़
बद-नसीबी ख़ुश-नसीबी को दरकिनार करती है
रब से चराग़-ए-उम्मीद है दिल में यकीं 'शीतल'
वाबस्तगी ये बेशुमार प्यार को आशकार करती है
शीतल विशाल यादव-
बिन तुम्हारे जागकर बीती कितनी शब बताएँगे
क्यों है तुम्ही से बेपनाह प्यार का सबब बताएँगे
रहती है दिल में फ़िक्र तुम्हारी परवाह बेचैन करें
कही किसी रोज़ मिलो तो ताब-ओ-तब बताएँगे
इतने भी मसरूफ़ ना रहो कि फ़ुर्सत ही न मिले
मक़्सद क्या है ज़ीस्त जीने का मतलब बताएँगे
नफ़रतें ही बसी हुई इस जहाँ में सिवाय तुम्हारे
क्यों है तुम्ही से बेपनाह प्यार का सबब बताएँगे
चाहत में दिखती मूरत रब की इबादत 'शीतल'
हर दिल को मशरब है इश्क़ ही मज़हब बताएँगे
शीतल विशाल यादव
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आयुष्य उज्ज्वल करण्या पावले जेव्हा योग्य दिशेने वळली
होते किती अयोग्य वाटेने मी तेव्हा चूक माझी मला कळली
जीवनी ऋतू सुख-दुःखांचे कधी नैराश्य तर पालवी आशेची
फुलला वसंत कष्टाचा अन् चिंतेची पाने अलगदपणे गळली
केले अपुल्यांनीच सदैव लक्ष्य उचलून प्रश्न क्षमतेवर माझ्या
केले निरुत्तर उत्तुंग भरारीने देही नवऊर्जा जणू सळसळली
होऊ दिले न कधी खच्चीकरण विचारांचे ठेवून मते ठामपणे
केला सामना धैर्याने जरी होती सहनशीलता माझी छळली
काळ-वेळ थांबत नाही कुणासाठी म्हणून राहा सदा तत्पर
सद्कर्म केल्याने कित्येक अंधारलेली जीवनवाट उजळली
शीतल विशाल यादव
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चाहत के शाख़-ए-गुल पे गुलाब नज़र आता है
तुम्हारी सूरत-ए-ज़ेबा में महताब नज़र आता है
तसव्वुर में मुझसे इस क़दर होते वो रूबरू कि
हक़ीक़त बनता हुआ अब ख़्वाब नज़र आता है
यूँ तो स्याह रातों-सा ही मंज़र रहता है हर-सम्त
तेरी सोहबत में हर तरफ़ ज़रताब नज़र आता है
मुक़द्दस-तरीन दिल है नाज़-ओ-अदा दिलकश
शोख़ियों में भी गौहर-ए-नायाब नज़र आता है
रहता है हर रोज़ इंतज़ार तेरे दीदार का 'शीतल'
तेरी इन आँखों में प्यार बे-हिसाब नज़र आता है
शीतल विशाल यादव
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