Shital Yadav   (शीतल विशाल यादव)
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35 MINUTES AGO

ढलती साँसें ऐसे बेबस हुई ज़िंदगानी
बिन तुम्हारे अधूरी चाहत की कहानी

गुज़रे दिन,महिने,साल यादों के सहारे
बढ़ती गई मोहब्बत हुई भले ही पुरानी

हर मुलाक़ात के एहसास को संभाला
रखी है याद-ए-माज़ी की सब निशानी

ग़मज़दा मौसम बदलने ये हिज्र-नसीब
क़ुव्वत-ए-इश्क़ हर बार हमें आज़मानी

टूटने ना दी उम्मीद बरसों से है इंतज़ार
मिलकर हमें रस्म-ए-उल्फ़त है निभानी

लौटने उन्हें मजबूर करेगी वफ़ा 'शीतल'
कुबूल हर दुआ होगी रब की मेहरबानी
शीतल विशाल यादव

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23 HOURS AGO

मुश्किल सफ़र यहाँ गाम-ब-गाम है
संघर्ष ही ज़िन्दगी का दूसरा नाम है

धूप दुख की कहीं है सुख की छाया
चैन नहीं किसीको मिलता आराम है

पर्चा-ए-इम्तिहाँ बना हुआ है हरपल
जवाब की खोज में सवाल तमाम है

जेबें जिसकी भरी उसकी शान यहाँ
मुफ़्लिसी होती रही हमेशा बदनाम है

हार मान कभी होती न जीत हासिल
नेक कोशिश को ही मिलता अंजाम है

कितनी कठिनाई हो संघर्षरत रहकर
लक्ष्य को पाकर देना सबको पैग़ाम है

रहना क़ायम सच की सोचपर 'शीतल'
हर बुराईपर भलाई से लगाना लगाम है
शीतल विशाल यादव


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2 JUL AT 19:01

सुधर सकती है चूक गर हो किसी काम में
बशर्ते सुबह के भूले लौट आ जाएं शाम में

उम्मीदपे ही क़ायम है ज़िन्दगी में सब-कुछ
आग़ाज़ चाहे जो हो मज़ा है नेक-अंजाम में

वक़्त रहते ही मिटानी चाहिए ग़लत-फ़हमी
वरना सच भी उलझ जाता झूठे इल्ज़ाम में

खोकर पाना कुछ पाकर खोना है ज़िंदगानी
टूटा इक ख़्वाब क्यों डुबोएं ख़ुद को जाम में

रखना हौसला यूँ बताके आती नहीं मुसीबतें
ढालना पड़ेगा सोच को हालात के आयाम में

इन्सां चाहे तो बदल सकता क़िस्मत 'शीतल'
बुलंद इरादे हो कोशिशें गर्दिश-ए-अय्याम में
शीतल विशाल यादव




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1 JUL AT 18:13

ओ रुठे दिल ये बता क्यों आलम-ए-तन्हाई है
स्याह रातों-सी ज़िन्दगी बिछड़ गई परछाई है

शब-ओ-रोज़ तसव्वुर में भी ज़िक्र उल्फ़त का
मगर ज़ालिम ज़माना हर बार करता रुस्वाई है

कर दिया सभीने मोहब्बत को खड़ा कटघरे में
दलीलें होती रहीं आज यूँ वक़्त की सुनवाई है

यूँ ख़ामोश दिल की आवाज़ किसी ने सुनी नहीं
समंदर-ए-इश्क़ की कोई जान न सका गहराई है

ज़िद न करो मान जाओ दिल ये ग़मगीन न करो
चाहत को अपनाओ हर-सम्त आलम-ए-रानाई है

हद से ज़्यादा गुज़रकर चाहते हैं तुमको 'शीतल'
कि कहते रहते सब दिल का मिज़ाज सौदाई है
शीतल विशाल यादव

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30 JUN AT 18:33

बेइंतिहा मोहब्बत का हुआ ऐसा असर है
कि दो पल की जुदाई भी यूँ ढाती कहर है

बदली वजह जीने की जबसे इश्क़ हुआ
सुधबुध रहे न कोई कि ये कौनसा पहर है

बे-सबब मुस्कुराते कभी बेक़रार हो उठते
हर वक़्त फ़िक्र तेरी मोहब्बत का असर है

दुश्मन बना ज़माना कहीं छीन न ले तुम्हें
हर पल चाहत खोने का लगा रहता डर है

समझ सकते न दिल के जज़्बात यहाँ कोई
अपने ही बेगाने बनकर यूँ घोल देते जहर है

देंगे हर बार इम्तिहाँ चाहत के वास्ते 'शीतल'
बता देंगे वजूद-ए-इश्क़ जो इससे बेख़बर है
शीतल विशाल यादव



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29 JUN AT 15:53

नसीब में जो नहीं उसको पाया नहीं जाता
मुकद्दर से हारे हुओं को हराया नहीं जाता

किया रुस्वा हर बार अपनों ने छलकपट से
कि अब किसीसे ये दिल लगाया नहीं जाता

भुला चुका दिल गहरे ज़ख़्मों का दर्द मगर
था जो अधूरा-सा प्यार भुलाया नहीं जाता

अक्सर ज़ीस्त कर लेती समझौता वक़्त से
कब होगा कोई हादसा बताया नहीं जाता

क़त्ल हुए अरमां रही न ज़िंदा ख़्वाहिशें भी
आशियाना ख़यालों का बनाया नहीं जाता

चले जाते हैं दिल अज़ीज़ हमें तन्हा करके
जाने वालों को यूँ वापस बुलाया नहीं जाता

साथ मुकम्मल न हुआ हो जो सफ़र 'शीतल'
पा ले मंज़िल फिरभी जश्न मनाया नहीं जाता
शीतल विशाल यादव



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28 JUN AT 17:41

सपूत मातृभूमि का है भारतवर्ष का अभिमान
ख़ून-पसीने की बूँद से सींचे खेतों को किसान

हिरे-मोती उगाता सोना है अन्नदाता हर कृषक
मिट्टी भी पावन उसके लिए है धरती माँ समान

कड़ी धूप में तपता ख़ुद भीगता भारी वर्षा में यूँ
मेहनत से बंजर भूमि भी बनाता खेत-खलिहान

बोता भूगर्भ में आशाओं के बीज रखता ख़याल
अंकुरित हर नन्ही कोंपल होती है उसकी संतान
................
👇🏻शेष रचना कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें।🙏🏻

शीतल विशाल यादव

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27 JUN AT 18:11

रिश्तों का अनोखा संगम प्रेम का बंधन हमारा
विश्वास की डोर से बंधा हुआ है जीवन हमारा

सुख हो या दुख समझे है हर जज़्बात दिलों के
अपनों के साथ से महके ऐसे घर-आँगन हमारा

पाते चैन-औ-सुकूँ हमेशा बड़े-बुजुर्गों के साए में
हर फ़िक्र,परेशानी से महफ़ूज़ रहे बचपन हमारा

डगमगाएं कभी क़दम जीवन के किसी मोड़ पर
थामके हमें हौसलों से किया रास्ता रौशन हमारा

नसीब ने जब भी कभी रुलाना चाहा नाकाम रहा
अपनों की दुआ से ख़ुशियों से भरा दामन हमारा

गौहर-ए-नायाब के जैसा होता हर रिश्ता 'शीतल'
सरमाया-ए-नाज़ वही होते हैं तन-मन-धन हमारा
शीतल विशाल यादव




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26 JUN AT 16:42

पतझड़-ए-हिज्र बीत चुका मिलन का सावन बना लो
बहार-ए-उल्फ़त से यूँ महकता हुआ गुलशन बना लो

जुड़ गया है तुमसे नाता मखमली-सा एहसास रूहानी
थम जाएँ वक़्त ऐसे बेहिसाब प्यार का बंधन बना लो

साँसों में पिरोया नाम तेरा इस क़दर शामिल है मुझमें
पाकीज़ा चाहत दिल की मुझे अपनी धड़कन बना लो

हर-सू नफ़रत के स्याह अंधेरे मिटा दे वफ़ा के उजाले
जगाने दिलों में लौ-ए-उम्मीद वो दिवाना-पन बना लो

इत्तिफ़ाक़ नहीं मिलना है हमपे रब की रहमत 'शीतल'
ताउम्र बनकर रह जाऊँगी तुम्हारी मुझे दुल्हन बना लो
शीतल विशाल यादव

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25 JUN AT 19:23

प्यार है मुझे उन यादों से
सहेज रखी मुलाक़ातों से

गुज़िश्ता लम्हात से जुड़ी
दिल के गहरे जज़्बातों से

शब-ओ-रोज़ ख़यालों में
गुज़ारी हुई सभी रातों से

हर वक़्त ज़िक्र-औ-फ़िक्र
उल्फ़त में की हर बातों से

दिलों को रौशन कर देती
ख़ुशियाँ दे उन बारातों से

महके ज़िंदगी सोहबत में
तेरी चाहत की सौग़ातों से

मिले सुकूँ दिल को'शीतल'
इश्क़ में भीगी बरसातों से
शीतल विशाल यादव







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