शाम का वो मौसम था बहुत खुशमुना,
साथ में वो शक़्स दिलकश दिलनुमा।
कुछ अधूरे से सवाल,
और उनके अधूरे ज़वाब लिए,
बैठे हम खुले आसमान तले।
हाथों में हाथ और चेहरे पे गौर था,
दिल में भी कुछ हल्का सा शोर था।
डर था थोड़ा, पर खुशी उससे थोड़ी ज्यादा,
डर ऐसा था कहीं कुछ ग़लत ना हो जाए,
खुशी तो खैर साथ वक़्त बिताने की थी।
वक़्त कब तेज़ी से भागने लगा हमें कुछ ख़बर ना थी,
साथ बैठे तो थे हम पर दिल को सबर ना थी।
अब सूरज भी अपने घर लौटने को था,
चिड़िया भी निकल पड़े थे अपनी उड़ान लिए,
पर हमें कहाँ पता था वापस लौटने का ठिकाना,
मानो उस पल में ही पूरी जिंदगी जीने का मन था बनाया।
दिल में बहुत सी यादें और आँख में पानी लिए,
बेमन से ही सही पर वापस लौटना तो था,
और वादा दोबारा जल्दी मिलने का था।
बातें हमारी कभी ख़त्म होगी ही नहीं,
अग़र मुलाकात हमारी यूँ ही बेवक़्त बेखबर होती रहेगी।
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