Shishank Singh   (shishank)
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Joined 19 October 2017


Joined 19 October 2017
21 MAY AT 8:08

रणछोड़ बन जिसने धर्म बचाया था,
वंश-विनाश कर भी धर्म को जिताया था।
हे पार्थ! नियमों में बंध कर धर्म कैसे पाओगे?
वो कृष्ण ही तो थे, जिन्होंने अधर्म से भी धर्म रचवाया था।

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20 MAY AT 1:36

जंजीरों में जकड़े हुए मेरे अरमान थे।
तोड़ने की कोशिश रोज़ की थी मैंने।
कुछ समय गुज़र गया, और जब पलट कर देखा — तो जंजीरें ही नहीं थीं।

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15 MAY AT 1:14

उम्र भर ढूँढा तुझे मैंने तेरे ही शहर में,
और तू मेरी राह, मेरे घर की चौखट पर ताकती रही।

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26 FEB 2024 AT 0:53

वक़्त ने कुछ इस तरह से तोड़ दिया है हमें
की शायरी में जिंदगी तलाशते हैं
और मयखानो खुशियाँ

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15 NOV 2023 AT 20:19

An ordinary person trying to live an extraordinary life, Getting knocked down in every direction

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9 SEP 2023 AT 22:49

अगर आंसू ला सकते हो आँखों मे तभी दुखी मानेगी यह दुनिया तुम्हे।

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31 JUL 2023 AT 23:58

वो कर्म ही क्या, जो किसी फल की आशा करते हुए करो.

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29 JUL 2023 AT 23:27

जब सही गलत की परिभाषा इंसान अपने अनुकूल बनता है। तब वहां पर सही और गलत का फर्क खत्म हो जाता है

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24 JUL 2023 AT 1:15

कुछ लोग खीचड़ होते हैं,
जिनको हाथ लगाने से सिर्फ आपके हाथ गंदे होंगे वो नहीं
करम करते रहो, बस करम करते रहो

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17 MAY 2022 AT 20:21

ख़ुशी के लम्हे खर्च करने मे इतने मशरूफ थे कि सोचा नहीं कभी ज़िन्दगी हिसाब मांग सकती है!

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