कफ़न पहन कर दफ़न बाक़ी रह जाता है
हमराही के हाथों से हाथ छूट कर
हर क़दम का, निशा बाक़ी रह जाता है-
प्यारी दोस्त
कितना इंतज़ार कराती रही जिंदगी
दोस्त को हर दिल,तलाशती रही जिंदगी
तेरी आमद से दिल दिलशाद हुआ
अब तक बेवजह इन्हेमाक सी जिंदगी-
तेरी मौजूदगी का एहसास हर- सू है
तू जहां भी हो मेरे रूबरू है
ज़माने की आदत ऊरूज ए ज़वाल
रंजिशों को आशिकों की आरज़ू है
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भीतर एक स्थान बनाकर रखिए
जीवन दीपक जलाकर
ज्योति सहेज कर रखिए
कल्पनाओं के भंवर में
जल को शांत रखिए
पर्वत पर काली बदली का मिलाप
इस प्रेम में आनंद रखिए-
न तन का मोह
न मन का श्रम
जगत से जो दिखे वह भ्रम
न प्रेमी न प्रेमिका बचा रहे प्रेम-
पिया ,काहे मन में उतरे तुम विराग बन के
तपस्या करवा दी स्वयं की भाग्य बन के-
विसाल ए इश्क़ है यही
रुह को बख़्शा कर
हासिल ए सवाब है यही
कभी शकुर कभी रहमान
ताबीर ए अल्लाह है यही
गुज़शता, आइंदा पल भी मेरे हमराज़
पर हक़ की फिराक़त है यही
तुम मुझ से चोरी की शिकायत ना करना
शिरी! ख़ुद को लूट कर पाया है यही-
रोज़ सांसों से तकरार होती है
तेरे ख़्याल की ही जीत होती है
फूल बनकर महेकता रहे बाग़बन में
धड़कनों की यही उम्मीद होती है
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