जब रातों को चिराग़ बुझ जाते हैं
और उजाला कहीं दूर नज़र आता है
मुझे ज़रूरत नहीं चेहरे पर लिबास की
वक़्त होता है आपपे ही मर जाने का-
किसे ने ना माँगी लंबी उम्र हमारी!
फिर भी शिद्दत से जिए जा रहे हैं!-
घाट-घाट रूप अनेक हैं
कहीं मौज़ है तो कहीं शोक है
पर देखो ना... हम तो इसमें
इस दुनिया के सारे रंग
देखते हैं
तुमने देखा होगा शोर वहाँ पर
हम बैठ वहाँ सुकून ढूँढते है
और जो हो साथ चाय फिर
अपने मुस्कुराने का ढंग देखते हैं-
तुम बनारस को
बस एक शहर समझते हो
तुम्हें क्या मालूम कि
तुम सागर को नहर समझते हो
गलियाँ छुपाये अपनी दास्तां
जाने कहाँ से कहाँ मुड़ जाती हैं
और तुम बस....
सड़कों पर फिरने को सैर समझते हो-
चटक धूप है
आँखों को चुभ रहीं चिंगारियाँ
कोमल नयन में धंस गईं
जैसे सैकड़ों चीटियाँ
आकाश मेघ को ओट में रख
कर रहे आवहन आग की ठिणगी का
क्यों क्रोधित है इतना अम्बर
या भटक गया पथ करुणा का-
कुछ मित्र नाग से है होते
जकड़ लेते
डंस भी हैं लेते
मानसिक अवसाद देते
झटककर झाड़ दिया कर
अपने ऊपर लिपटे ऐसे सर्प को
दूध पिलाकर बदल ना पाएगा
वो दंश देकर
कोई दूजा मित्र फिर से बनाएगा-
बड़ा सुकून है आज दिल को
कि एक रोज़ उसने अपनी सुनी
गैरों की भीड़ में ना गुम हुआ
उसने खुद की महफ़िल चुनी-
जो दोस्त पीठ पर घोंपते थे खंजर
उनसे अब मेरी रुख़सती हो गई
सुनाने लगी जबसे दर्द अपना खुद को
मैं आप ही अपनी हबीब बन गई
एक रोज़ यूँ हुआ
मैं मुकम्मल हो गई-
हवाओं ने नब्ज़ थाम रखी है
कहती हैं...
तुम्हारी उदासियाँ पकड़ ली है मैंने
अब बारिश को बुला
भेजूँगी तुम्हारे पास
मुझे उम्मीद है...
वो धो देंगी तुम्हारी उदासियाँ
तुम जी भर रो लेना उनकी आड़ में
ज़ख्म गहरा ना हो
इसके लिये भीगना ही होगा
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