Shilpi Agrawal   (शिल्पी अग्रवाल ✍️)
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मन से परे भी अगर कोई सोचता है मुझे, उसके मन से आह लिए एक राह ज़रूर गुज़री होगी,
Joined 10 July 2019


मन से परे भी अगर कोई सोचता है मुझे, उसके मन से आह लिए एक राह ज़रूर गुज़री होगी,
Joined 10 July 2019
16 MAY AT 18:24

जब रातों को चिराग़ बुझ जाते हैं
और उजाला कहीं दूर नज़र आता है
मुझे ज़रूरत नहीं चेहरे पर लिबास की
वक़्त होता है आपपे ही मर जाने का

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8 NOV 2024 AT 20:41

काशी का हो जाना
या फिर काशी हो जाना

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21 OCT 2024 AT 9:20

किसे ने ना माँगी लंबी उम्र हमारी!
फिर भी शिद्दत से जिए जा रहे हैं!

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14 OCT 2024 AT 15:20

घाट-घाट रूप अनेक हैं
कहीं मौज़ है तो कहीं शोक है
पर देखो ना... हम तो इसमें
इस दुनिया के सारे रंग
देखते हैं
तुमने देखा होगा शोर वहाँ पर
हम बैठ वहाँ सुकून ढूँढते है
और जो हो साथ चाय फिर
अपने मुस्कुराने का ढंग देखते हैं

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13 OCT 2024 AT 17:30

तुम बनारस को
बस एक शहर समझते हो
तुम्हें क्या मालूम कि
तुम सागर को नहर समझते हो
गलियाँ छुपाये अपनी दास्तां
जाने कहाँ से कहाँ मुड़ जाती हैं
और तुम बस....
सड़कों पर फिरने को सैर समझते हो

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8 OCT 2024 AT 17:24

चटक धूप है
आँखों को चुभ रहीं चिंगारियाँ
कोमल नयन में धंस गईं
जैसे सैकड़ों चीटियाँ
आकाश मेघ को ओट में रख
कर रहे आवहन आग की ठिणगी का
क्यों क्रोधित है इतना अम्बर
या भटक गया पथ करुणा का

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8 OCT 2024 AT 12:20

कुछ मित्र नाग से है होते
जकड़ लेते
डंस भी हैं लेते
मानसिक अवसाद देते
झटककर झाड़ दिया कर
अपने ऊपर लिपटे ऐसे सर्प को
दूध पिलाकर बदल ना पाएगा
वो दंश देकर
कोई दूजा मित्र फिर से बनाएगा

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7 OCT 2024 AT 7:24

बड़ा सुकून है आज दिल को
कि एक रोज़ उसने अपनी सुनी
गैरों की भीड़ में ना गुम हुआ
उसने खुद की महफ़िल चुनी

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29 SEP 2024 AT 14:11

जो दोस्त पीठ पर घोंपते थे खंजर
उनसे अब मेरी रुख़सती हो गई
सुनाने लगी जबसे दर्द अपना खुद को
मैं आप ही अपनी हबीब बन गई
एक रोज़ यूँ हुआ
मैं मुकम्मल हो गई

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23 SEP 2024 AT 20:16

हवाओं ने नब्ज़ थाम रखी है
कहती हैं...
तुम्हारी उदासियाँ पकड़ ली है मैंने
अब बारिश को बुला
भेजूँगी तुम्हारे पास
मुझे उम्मीद है...
वो धो देंगी तुम्हारी उदासियाँ
तुम जी भर रो लेना उनकी आड़ में
ज़ख्म गहरा ना हो
इसके लिये भीगना ही होगा

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