हिंदी वर्णमालाओं के सारे अक्षर,लिपी ,मात्राएं ,छंद,रस एक ही सुर में एकत्रित होकर आज गाने लगे,
तेरी लीलाओं को शब्दों में बांधने में खुद को असमर्थ बताने लगें।।
हे वैकुंठनाथ तू ही परमपुरुष,जगन्नाथ,जनार्दन है
तू स्वयं ही समस्त मात्राओं का सार ,भाषाओं की परिभाषा है
फिर मेरी कलम तेरी व्याख्यान क्या लिखे..??
तू ही मेरी सियाही का गाढ़ा नीला रंग और तू ही मेरे शब्दों की पूंजी है,
मै अब तुझपर क्या लिखूं??
तुझपर लिखने के साहस से उंगलियां भी कम्पन करने लगीं,
ये भी शब्दों को विराम दे तुझे शत शत नमन करने लगी।।🙏🙏
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