मैं मानता हूँ कि मैं प्रेम में हूँ
मेरी हक़ीक़त मेरे ख़्वाबों से भी ज़्यादा हसीन है ।-
कलम पर विश्वास करती हूँ ।
यू तो मुकम्मल सारा जहां हम कर देते ,
एक गर्दिश में रह रहे थे कब से
वरना फलक की बात करते हो
तुम मुस्कुरा कर कहते तो सही
तुम्हारी तरफ़ ये सारा आसमाँ हम कर देते।-
ना वफ़ा थी, ना जिक्र रह गया,
कि अब ना मिलने की आरजू है,
वो ये बात बेफ़िक्र कह गया,
कि बेचैनी इस बात की नही कि,
हम ना मिल पाएंगे दुबारा उनसे,
बस गम इतना था कि, ना मुराद अब इश्क- इश्क ना रह गया.
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ना जाने किस दौर से गुजरे हम
ना जाने ये गम कब कम होंगे
उसकी आँखो में प्यार दिखा था हमे
ये गलतफ़ेमिया कब खत्म होंगे...
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रुकते तो है मगर सँभलना नही चाहते
ये वक्त कि नुमाईश ही सही
कई चेहरे सामने आ चुके है
वरना हम तो तुम्हे परखना तक नही चाहते
दिल टूटा है सौ दफ़ा, एक बार और सही
बस इन आँखों मे और भटकना नही चाहते...-
रब मिला था मैने पूछा उससे
आखिर इन गमो कि कीमत क्या है
उसने कहा सब कुछ तो तुझसे छीन चुका हूँ..
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लिखना बन्द नही किया था मैने
बस आदत इतनी हो चुकी थी कि
दर्द का एहसास होना बन्द हो गया था...-
यू बिखरे थे जस्बात
कुछ रह गयी फ़िर, अधूरी बात
वो कहते थे दामन ना छोड़ना यू
कि सिमट ना पाऊ, मुहँ ना मोड़ना यू
अब इश्क इस कदर है
उनसे कि आँखो से आंसू हम रोक नही पाते
होठ मुस्कराते तो है मगर
लफ़्जो का साथ हम जोड़ नही पाते...
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दीवार पर टंगी तस्वीर भी कुछ कहना चाहती है
बस तस्वीर-ए-दीदार का कुछ पता नही...
उस पर जमी धूल बताती है
कई बरस बीत चुके है शायद
आंखें, आज भी दरवाजे पर टिकी है
बस इंतजार का कुछ पता नही....-