Shikha Singh   (Shikha-The Graphomaniac Wordsmith)
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Joined 11 October 2017


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Joined 11 October 2017
4 SEP 2023 AT 20:45

रस्ता तुम्हारा ताकना पसंद है हमें,
दिन रात तुमको सोचना पसंद है हमें।
नजरें झुका के, कनखियों से, दिल पे हाथ रख,
छुप छुप के तुमको देखना पसंद है हमें।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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23 AUG 2023 AT 19:23

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दृढ़ता पराक्रम का तकनीक से मिलन,
उपलब्धियों की एक खान हो रहा है जी
नमन विज्ञानियों को, इसरो के ज्ञानियों को,
आप पर गर्व और मान हो रहा है जी।
जल हो या थल सारे विश्व के पटल पर,
हिन्द का अमर गुणगान हो रहा है जी।
नभ गर्जना में और भारतीयों के ह्रदय में,
जय जय जय चंद्रयान हो रहा है जी।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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28 JUL 2023 AT 23:25

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आँखो से बाहर आने को खारा पानी मचल गया है,
दिल फ़िर टुकड़ों में टूटा है, कैसे कह दूँ सम्हल गया है।
रिश्ता, बातें, हँसना, रोना सब कुछ कितना अच्छा था,
इतनी जल्दी तुम बदले या वक़्त ही मेरा बदल गया है?

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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27 JUL 2023 AT 23:52

आँख में कुछ नमी जिंदगी भर रही,
बर्फ़ दिल में जमी जिंदगी भर रही।
जाने से आपके इतना सा ही हुआ,
जिंदगी की कमी जिंदगी भर रही।।

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27 JUL 2023 AT 22:21

तू बता दे कि मैं क्या कर जाऊँ,
बोल किस हद से मैं गुज़र जाऊँ।
कर ले तू मुझ पे यकीं इसके लिये,
नाम लूँ मैं तेरा औ मर जाऊँ।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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26 JUL 2023 AT 18:35

दिल के इस दर्द को कहीं तो अब पनाह मिले,
तेरी तलब हो मुझे ऐसी ना अब चाह मिले।
मंजिलें हो गईं अपनी जो अलग तो मुझको,
तू जिससे गुज़रा हो, ना ऐसी गुज़रगाह मिले।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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26 JUL 2023 AT 12:29

सभी भारतवासियों को कारगिल विजय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। भारत माता की जय।

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देश जो सशक्त देशभक्त वाला रक्त चाहे,
बूंद बूंद निज बिन तोल मोल दीजिए।
सैन्य वस्त्र धार अस्त्र शस्त्र के प्रहार से,
शत्रुओं की वीरता के धागे खोल दीजिए।
सिंह सा दहाड़ अरि वक्ष फाड़ फाड़ के,
हिम शिखरों में आज आग घोल दीजिए।
आज आप सब निज हाथ थाम राष्ट्र ध्वज,
भारत माता की जय जय बोल दीजिए।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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21 MAY 2023 AT 20:04

🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐
मेरी अनमोल सी एक निधि चाय है,
सारे स्वर्णिम क्षणों की सुधि चाय है।
चाहे उठता हो सर में या दिल में उठे,
मेरे हर दर्द की औषधि चाय है।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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9 MAY 2023 AT 13:39

रूप जैसे कामदेव शौर्य जैसे महादेव,
दया क्षमा नीति शील में भी वो परम था।
रौद्र गर्जना से शत्रुओं को ललकारता था,
शरणागतों के लिए सहज सुगम था।
वज्र का शरीर, मन भगीरथी नीर सम,
प्रजा को सदैव रखा जिसने प्रथम था।
एक वार में ही चीर डाला घोड़ा व सवार,
महाराणा जैसा कहो किसमें ये दम था।।

शिखा सिंह"ऊर्जिता"

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8 MAR 2023 AT 12:41

करतीं अज्ञानता को विदा स्त्रियाॅं,
घर को रहतीं समर्पित सदा स्त्रियाॅं।
चाहो जिस रूप में, तुमको मिल जायेंगी,
अंबिका, चंडिका, शारदा स्त्रियाॅं।।

शिखा सिंह "ऊर्जिता"

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