धीमे से चलने वाली ट्रेन ने आज
रफ्तार पकड़ ली है;
लगता है फ़लसफ़ा इसे भी है
कि इसकी मंज़िल महज़ मंज़िल नहीं,
तेरा ही शहर है!-
कैफियत ऐसी है, सब संभल रहा है;
मेरे हिस्से का इश्क़, वो किसी और से कर रहा है!-
How does it feel,
to just be alive?
To be in your stillness,
and to not thrive?
How long will you carry
the heaviness
in your heart so fragile?
How long will it take,
for you to smile?
Too many questions
run in your mind,
the answers to them,
will they ever unwind?
Poetry and life have
now become synonymous.
who once longed fame,
now wants nothing
but being anonymous.-
Learnings from the Month – MARCH 2024
1. Your assumptions, be it about the people, or situations, make things go awry.
2. Putting yourself first (in a good way) can do wonders to your life, and of those around you.
3. People's perception about you, is not your reality, unless you, yourself, want to make it your reality.
4. You outgrow yourself when you start praying for healing of those too who intentionally cause you the suffering.-
व्यक्तिगत सेवा-भाव और मैं //
व्यक्तिगत सेवा भाव मुझमें शायद ही कभी होगा। व्यक्तिगत सेवा भाव के साथ आती है नाक-धसाऊ आदत। मानो किसी की जिंदगी में क्या चल रहा है, इस बात की पूरी खबर होना, लाज़मी हो जाता है।
यूं तो मैं हिंदी साहित्य से इतना वाकिफ नहीं, मगर मन्नू भंडारी जी का कथन मेरे ज़ेहन में हमेशा रहता है कि "हर एक व्यक्ति में इतनी ताक़त हमेशा होनी चाहिए कि अपने दुख, अपने संघर्षों से अकेले जूझ सके।" शायद इसलिए, ना मैं अपनी परेशानियां किसी के साथ साजा करती हूं, और ना ही किसी की परेशानियां सुनने की खुद में इच्छा रखती हूं।
अब ख़्याल मेरा हो और उसमें तुम्हें विरोधाभास की झलक न मिले, ये तो मुनासिब नहीं। काफ़ी दिनों से मेरी हर एक फ़र्द से बात-चीत बंद है। और जवाब के तौर पर मेरा महज़ इतना कहना होता है कि, बात करने का वक़्त नहीं, बात करने की इच्छा नहीं, और इच्छा के विपरीत कुछ करना, मुझे पसंद नहीं। अब ये फ़लसफ़ा तो हर किसी को होता है, कि वक़्त एक सा नहीं रहता। अभी मेरा हाल पूछने वाले ये लोग आने वाले वक्त में मेरी जिंदगी में मौजुद होंगे भी या नहीं, पता नहीं। और मेरी दिली ख्वाहिश सुनोगे, तो मेरे जैसे फ़र्द से कोई भी वास्ता उनकी खुदी के लिए ही ठीक नहीं। खैर, छोड़ो,
और सुनो..— % &जब कभी लगे तुम
किसी परेशानी से जूझ रहे हो
थोड़ा ही सही, मगर पहले
खुद से खुद को वक्त देना.
कुछ दिन का अवसाद होगा,
कुछ दिन की बेरुखी भी,
उलझनें तो रहेंगी मगर,
उस लम्हात में किसी के
साथ की उम्मीद ना होगी.
खुद ही में इतना
मुकम्मल हो जाओगे,
जिंदगी की होने वाली हर बात,
अकेले होकर भी, बेहद खास होगी!— % &-
कहते हो तजुर्बा बहुत है तुम्हें,
किसी का हाल-ए-दिल, उन्हें
देख के ही बता देते हो.
यहां, ना जाने कितने लोग
अपने टूटे ख्वाबों का बोझ
अपने चेहरे पर लिए चल रहे हैं,
और सब खाक कर,
बेहद आसानी से तुम
उनके उदास चेहरे की वजह
उनका ना-मुकम्मल सा
कोई इश्क बता देते हो!-
Kinna sukoon bhareya hunda hona ae,
kisi de layi, bas enna khaas hon ch.
Ki ohna' di apne Rabb ton' kitti
har ik ardaas vich, tera vi naa' hon ch.-
Each time someone asks you about someone else, I hope, you choose to say the actual facts or truths about the other person than merely blabbering your opinions about them. And if, in case, you are not wise enough to differentiate between the two, I hope your gut tells you to choose silence over saying anything.
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सुनो,
फ़र्ज़ करो तुम मेरे सामने हो,
मगर.. //
(अनुशीर्षक में पढे़)
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