कुछ समझ नहीं आ रहा था
ये,मन किस और जा रहा था
लिखने बैठी जब कुछ शब्दों
को तो ये और उलझा रहा था
खामोशी में भी ये अपनी
अन्जानी आवाज को सुना रहा था
जो रह रह कर मुझे और सता रहा था
कहने को? लिखने को? बहुत कुछ है
मग़र
जो चुपके से मेरे कानों में अपने
नाम से शोर मचा रहा था-
My Insta I'd 27shikha pandey
जब आप उम्र के इस पडाव पर होते है,,
जहां ख़ुद को स्वीकार करना,,,
कभी कभी थोड़ा कठिन हो जाता है,,,
तब मन सोचता है,,माँ की तरह हमारी भी बारी आ गई,,
जो बढ़ती उम्र को बड़े अदब से गले लगा रही,,
गालों पर पड़ती जब झुर्रियाँ चेहरे पर झलकती है,,
तो अभी तक मिले अनुभवों से ख़ुद को दर्शाती हैं,,
बालों में आती सफ़ेदी भी थोड़ा बड़प्पन भी दिखाती हैं,,
उम्र बढ़ने के साथ साथ ये ख़ुद को अपनाती भी है,,
जैसी भी है,,वो अपने आप में संपूर्ण नज़र आती हैं,,
आँखों में आते काले घेरे से वो ख़ुद की कहानी बताती है,,,
जब स्वीकार कर लेती है,,
ख़ुद को तो और भी खूबसूरत नज़र आती हैं,,,
हर नारी अपनी उम्र के इस खूबसूरत पड़ाव पर,,
अपने बीते दशक को दिखाती है,,
लेके अपने साथ अनुभवों को
वो अगले सफ़र के लिए निकल जाती है,,
जहां अपने लिए फिर से खूबसूरत,,
कुछ ख्वाहिशों को मन के झरोंखो में सजाती है....-
Music ki dhun jab bajti hai,,
Tab zindgii bhi Kisi,,
Sur se kam nahin lagti hai,,
Aaspaas bajte hain sitaren,,
Jinmen ghole hain zazbaat saare,,,
Gungunati in fizaaon mein,,
Apni tasahn se chalo jab payare,,
Bas itna hi kehna,,,
Aaram se chalna kahin thokar,,
Lag na Jaye mere pyare,,
🤭😀🤣
Life always teching me like pyare.....
Itne twist and turn 🛞-
जब भी तेरे दर पे आती हूँ
ख़ाली हाथ वापस नहीं जाती हूँ
देता है
तू उम्मीद की रोशनी जो
ख़ुद के भीतर पाती हूं
होती है सुकून से बातेँ
जो आपके साथ दोहराती हूँ,
मन में जागे सवालों को
तुझको समर्पित कर जाती हूँ
जो कुछ भी पाया है तुझसे
तुझ को ही सौंप जाती हूँ-
लिखती हूँ
सोचती हूं
फ़िर मिटाती हूँ
अपनी लिखावट पर मैं
ख़ुद के निशान छोड़ जाती हूँ
-
इस शहर की गलियों में कुछ ख़ास तो है
जो हर आहट को जानती है
यहां हवा भी ग़र रास्ता बदले
तो उस रूख पहचानती भी है
गुज़रते हुए वक़्त में
एक पल ऐसा नज़र आता है
जब ज़मी पर वो आंसमा उतर आता है
हाँ हमारे शहर में कभी कभी वो
चाँद नज़र आता है-
नारी में कुछ बात तो होती ही है
जो दर्द में भी एक ख़ाब सा सीती है
जिसके दामन में बिखरे हो मोती कई
उस मोती से वो माला को भी पिरोती है
कोमल होती है,,पर कमज़ोर नहीं
भाव मात्त्व का रखती है
हर नारी में इक झलक माँ की बस्ती है
जो हर घर की दुआओं में वास करती है
जिसकी किलकारी से घर आँगन गूंजती है
जो अपने आप में मुकम्मल होती है
नारी की कितनी पहचान होती है
जो एक अल्फाजों में सीमित नहीं होती
बनके जाने कितनों की प्रेरणा
वो कितनों को प्रेरित कर जाती है
संघर्षों की ताप पर चलकर
वो मिसाल कितनों के लिए बन जाती है
अपनी बनाई दुनिया में वो कितने किरदारों को जी जाती है
जो अपनी पहचान के लिए
ख़ुद अपनी तक़दीर को बनाती है
हर नारी को समर्पित
-
या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता
नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमो नमः
-
आईने में एक अक्स नजर आया
जो मुझे कुछ कहता फरमाया
बोला खुद को पहचाना तुमने
इस आईने के पीछे छुपे चेहरे को जाना तुमने
मैं हैरान परेशान बस निहारे जा रही थी
आईने के पीछे छुपे चेहरे का सच जान रही थी
फिर सच भी देखो कितना सच्चा निकला
अरे वो अक्स भी तो मेरे जैसा निकला-
कभी कभी तेरे आने की आहट होती है
फ़िर ठहरे हुए जज़्बात में
लहरों सी हलचल होती है
यूं तो ख़ामोशी में भी तो
कोई बात तो ज़रूर होती है
जो रूह को सुकून दे
ऐसी मोहब्बत भी क्या खूब होती है-