रात के कांधे रख के सर अपना
एक बेफ़िक्रा चाँद सोता है
तुमसे मिल कर है दिल को हैरत सी
इतना प्यारा भी कोई होता है
शिखा पचौली-
आंखों से तुम जल्दी ही कुछ कह देना
हां कर देंगे लो हम वादा करते हैं
शिखा पचौली-
किस ख़ूबी से हमने दिल को मारा है, इश्क़ की बातें अब अय्यारी लगती हैं
इक दूजे की कसमें खाते डरते थे, नादां कितनी अपनी उल्फ़त थी यारों
शिखा पचौली-
तुमसे हमको बस इतना ही कहना है
तुमको हमसे थोड़ा पहले मिलना था
शिखा पचौली-
इस दिल-ए-नाशाद का ,इल्ज़ाम उसके सर क्यूं हो
वो है थोड़ा बेवफ़ा , इसके सिवा कुछ भी नहीं
कुछ तो कहना चाहती थी, मेरी ख़ामोशी तुम्हे
तुम बड़े मसरूफ़ थे, तुमने सुना कुछ भी नहीं
शिखा पचौली-
इस जहां की हर ,ख़ुशी से ऊबकर
लो चला वो ,ज़िन्दगी से ऊबकर
प्यार ,दोस्ती ,वफ़ा की, बातचीत
बस इसी से, बस इसी से, ऊबकर-
उसको देखा तब ये, दिल को इल्म हुआ
मारे ख़ुशी के मरना ,कैसा होता है....-
सच बात ...यहां राह-ए-सहूलत कहां होती है
फिर इतनी सहूलत से मुहब्बत कहां होती है-
कितना भोला यार है, हैरत है हमको
इश्क़ भी करना है उसको ,चालाकी से-