Shikha Maurya   (Shikha maurya)
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Joined 7 May 2020


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25 FEB 2023 AT 20:11

खुरदुरी सी सादगी है उन बेग़ैरत रातों में
कि कोई ओस की बूँद गिरी हो बबूल के ठूंठ पर
जैसे अरसों से 'कनीज़' हो उनकी
'केवल रात के लिए'......
सौंधी सी ठंडक है उस अनचाहे छुअन में
कि किसी ने बड़े अदब से कर दिया हो साथ में
जैसे कितने 'अजीज़' हों दोनों
'केवल रात के लिए'.......
प्रकृति की तालीम है उस ज़बरदस्ती मिलन में
कि किसी ने सिखाया हो सबब घुलने का
जैसे मीठी 'तमीज़' हो दोनों में
'केवल रात के लिए'......
मौन सा स्वर है ओस के वाष्पन में
कि चुपके से रश्मियाँ उठा ले गयीं हों उसे
जैसे इक 'सहमति' हों दोंनो में
इक वादा हो रात्रि पुनर्मिलन का
'सदा के लिए'.......


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1 JUN 2022 AT 9:17

मेरे खुदा को 'मर्ज़' है-
इक तुम्हारी याद का ,इक तुम्हारे साथ का
हर बात का,जज़्बात का और तेरी आवाज़ का
हाँ मर्ज़ है मुझे-तुझमें गुज़ारी रात का
परवाज़ सी उस रात को परवान तक चढ़ने दे।
तो फिर मुझे तेरी याद में पाँचो 'अज़ान' करने दे।


अपनी रेत सी यादों को यूँ रोम में समेट कर
पिघले हुए उन रोम को यूँ पानी बन कर बहने दे।
इन नसों को प्यास है तेरे मृदु स्पर्श का
तेरी टपकती सीलन से इन नब्जों को तर करने दे,
तो अब मुझे तेरी याद में पाँचो 'अज़ान' करने दे।


मेरे वज़ूद के हिस्से को जगा कर शाम-ए-अज़ान से
अपने जिस्म के अंश को मेरा 'नमाज़ी' बनने दे।
जला दे अपने अश्क़ को मेरे तपन की आँच में
आग सा तन -राख सा मन- चंदन सा शीतल करने दे,
तो मुझे तेरी याद में पाँचो 'अज़ान' करने दे।

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11 MAY 2022 AT 17:18

मेरे नाम से मेरी हैसियत पूछी जाएगी
चाहने वालों से ख़ैरियत 'और'
ना चाहने वालों से कैफ़ियत पूछी जाएगी।

मौत के इम्तहां में,कुछ देर रुकी साँसों से
लिखे हुए शब्दों की, एहमियत पूछी जाएगी।

शून्य में जाती अधखुली पलकों से
पार्थिव देह की शख़्सियत पूछी जाएगी।

कब्र पर पड़ी मिट्टी की जागीर से
उड़ती हुई ख़ुश्बू की रूहानियत पूछी जाएगी।


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9 JAN 2022 AT 22:26

....

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3 DEC 2021 AT 1:29

तू बैठा हो गुमसुम किसी धूप की छांव में
सिमटी हो "तल्ख़" रेत तेरे भीगे पांव में
तेरी तल्खियां मिटाने आती
मेरी "शीत" ज्वार की लहरें
मैं उन ज्वार की लहरों का दरिया बन जाऊं
तेरे पैरों के सुकून का ज़रिया बन जाऊं....

भरी हो उनींदी तेरी झपकती पलकों के पास में
छुपी हो उबासियाँ तेरी हर महकती सांस में
तेरी उबासियाँ मिटाने आती
मेरी "गर्म" साँसों की लहरें
मैं उन सांसो की लहरों का दरिया बन जाऊं
तेरे आंखों के सुकून का ज़रिया बन जाऊं....

आती हो मेरी आहट तेरी धड़कनों के कोने में
तू भी उलझा हो मेरे कुछ ख़यालात सजोने में
तेरी उलझनें मिटाने आती
मेरी तन्हा यादों की लहरें
मैं उन यादों की लहरों का दरिया बन जाऊं
"तू मेरा हमदर्द हो"
और मैं तेरे हर सुकून का ज़रिया बन जाऊं....




-Shikha Maurya




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23 OCT 2021 AT 20:33

नीले आसमां में तारें बेबाक़ हो
बादलों के पार से ताक झांक करता
वो "पूर्णमासी" वाला चमकीला मेहताब हो
हाथ पकड़ने की कोई ज़बरदस्ती नहीं
"इक" कुल्हड़ वाली चाय और तू पूरी तरह मेरे साथ हो।

बहती हवा में तनिक सर्दी का अहसास हो
ज़मीन से उठती हुई मिट्टी की खुश्बू में
हवा से मिलने का अपना अंदाज़ हो
बस "नदी" कोई सी भी हो
किनारें इक सुकून भरा घाट हो।

बूंद से सिमटे लफ़्ज़ में शून्य सा अल्फ़ाज़ हो
हर झपकती पलकों में राज़ की ही बात हो
चाहूंगी बस इतना;
तेरे भटकते मन में मेरे उलझे हुए "ख़यालात" हो
तेरे कंधे पर मेरा सिर और मेरे सिर पर तेरा हाथ हो
आरज़ू है कि तू पूरी तरह मेरे साथ हो.......

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29 SEP 2021 AT 20:08

बहुत कुछ कह रहा
इन गुस्ताख़ आँखों का मंज़र
बूँद की तलब में
दिन की लहरों को सीने से लगाता हुआ
रात की चांदनी में गुमसुम समंदर।
बेख़ौफ़ चल रहा
इन सांसों का मुक़द्दर
रेत की प्यास में
ख़बर भी कहाँ है उसे तूफ़ानों की
सीपियों की उल्फ़त में पड़ा है बेख़बर।
वो बस तुझे देख रहा
बेधड़क सा हर पहर
क़ैद-ए-हयात की चाह में
बची नब्जों को हाथों पर थामे
एक तुझे पाने को
काफ़िरों सा फिर रहा है दर-ब-दर।

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22 SEP 2021 AT 21:04

अल्फ़ाज़ बना कर उसकी आंखों को
अनजान "शब्द" सा लबों पर उतार लूं
मैं उसे सुनती रहूं
और वो अनकहें नग़मे सुनाता रहे।
स्याही बना कर उसके इत्र का
उलझे "धागों" सा हथेलियों में समेट लूं
मैं उसे पढ़ती रहूं
और वो गुमनाम फ़लसफ़ा लिखता रहे।
एहसास बना कर उसके जज़्बातों को
टपकती "सीलन" सा रूह में उतार लूं
मैं उसे भिगोती रहूं
और वो मुझ पर बरसता रहे।

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14 AUG 2021 AT 22:14

आज फिर वो सुबह है
बिल्कुल उसके जैसी मस्तानी,
सहर-सहर
रश्मियाँ लटों से लड़ती हैं।
जब उसकी धूप मेरे छाँव पर पड़ती हैं।।

आज फिर वो शाम है
बिल्कुल उसके जैसी आसमानी,
पल-पल
इन आंखों को तो सुकून सी देती हैं।
बस सांसो को मुश्किल से लेती हैं।।

आज फिर वो रात है
बिल्कुल उसके जैसी रोमानी,
शब-शब
बिना नींद के ही ये आंखे सोती हैं।
इक स्वपन नही उसके हज़ार ख़ाब पिरोती हैं।।

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10 JUL 2021 AT 10:34

मुख़ातिब होना तो दूर
वो सपनों में भी कहाँ ठहरता है...
ज्यों ही आता है नींदे टूट सी जाती हैं
दीदार के पहले आंखे खुल ही जाती हैं
कितनी "बारीकी" से
उम्मीद को ना-उम्मीद करता है
वो सपनों में भी कहाँ ठहरता है...
काश वो मेरा मेहताब बन जाता
सुर्ख़ ना सही सूफ़ी ही कर जाता
कितनी "सादगी" से
ख़्वाहिशों की खुदकुशी करता है
वो सपनोँ में भी कहाँ ठहरता है...

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