दास्ताँ न सही
अफ़साना तो होगा
हम न सही
हमारा फ़साना तो होगा
और उन ख़यालों को बुन कर मैंने एक शक़्ल दी है
हक़ीक़त ना सही कोई ठिकाना तो होगा🙂-
Tum ek dafa dekh kar hi muskura do shifa
Hum fana na ho jayein toh kahna-
मुतमईन में इस लिए भी हूँ
कोई मेरे साथ हो या न हो
मेरा अल्लाह मेरे साथ है❤️-
Na qabl e bardast tha jo ,
humne wo waqt bhi basr kiya hain ,
Rona tha bahut humne
afsosh hans kar gam ko dafan kiya hain ।-
ना जाने क्यों तेरा ख़्याल बार बार आता है,
मैं ग़र तुझे भूलूँ तो हर ज़र्रा ज़र्रा तेरी याद दिलाता है
और ये मुंतज़िर -ए- ग़म में कब तक रहूँ मैं
कोई तुझे बताये की तू याद कितना आता हैं |-
मिले ही नहीं जिससे उसके मुंतज़िर क्यों हैं,
वो वहाँ मुतमईन,
और हम यहाँ बेज़ार क्यों हैं |-
Aur ab th aisa lagta hain ke jese zindagi rooth gayi ho
Koi keemti cheez piche chhut gayi ho
Muddaton ho gay khush huye
Lagta hain ab jese mujhe iski bhi adat ho gayi ho
Aur jese parinde aasma mein udh kr bapas ghr na aaye
Lgta hain meri muskurhat bhi kahi rah gayi ho
Yun th bhulega na jamana tujhe kabhi ye hayat
Lgta hai koi apna tujhe bhool gaya ho-
हर बात लफ़्ज़ों से बयाँ नहीं होती
कुछ बातें आँखे भी करती हैं
आप तो बैठे हो हमसे हज़ारों मील दूर
मेरी हर सांस आपकी फ़रयाद है करती-
अहसास ना हो तो इंसानियत भी ना होगी
इंसानियत से बडी कोई इनायत ना होगी
ना जाने क्यों लोग भूल बैठे है
गलती उनकी दिखती नहीं
तो उनकी सुनवाई ना होगी
छुपाते हो तुम अपने गुनाहों को
क्यों भूले हो क़ब्र मैं तुम्हारी रात ना होगी
ना कोई तुम्हें वहाँ देखने वाला होगा
ना कोई तुम्हारी तरफदारी करने वाला होगा
होगा कुछ साथ ग़र तुम्हरे तो वो नेकियों का पल्ला होगा
वक़्त अभी भी है संभल जाओ
इस जहाँ मैं आख़री शाम तुम्हारी भी होगा-
रिस्ता कोई भी हो अग़र उस रिस्ते मैं इज़्ज़त, प्यार ,वक़्त ,परवाह ,एतमाद ना हो तो वो रिस्ता महज़ एक मज़बूरी बन कर ही रह जाता है |
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